विज्ञान और व्यवहारिक ज्ञान | Vigyan Aur Vyavaharika Gyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
300
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विज्ञान और अमरीकी नागरिक 9
रोम की संस्कृति को समझा और अपनाया । पुनर्जागरण के पहले युग में सत्य
की निष्पक्ष खोज का कार्य उन लोगों ने आगे बढ़ाया जिनका सम्बन्ध লিজীনি
अथवा सजीव प्रकृति की वजाय मानव और उसके कार्यो से था। मध्य काल में
मानवीय समस्याझ्रों के लेखकों ने मानव विवेक को आलोचनात्मक दृष्टि से तथा
पूर्वाग्रहहीन ढंग से प्रयोग में लाने तथा बिना किसी भय अथवा पक्षपात के अनु-
संधान करने की दिलचस्पी जीवित रखी । ज्ञान के पुनरुत्थान के आरम्भिक
दिलों में मानववादियों द्वारा प्राचीन की खोज ही आधुनिक निष्पक्ष अनुसंधान
के समान थी। वैज्ञानिक उत्सुकता का ज्वार आने से पूर्व प्राकृतिक विज्ञान में
अनुसंधान के प्रति शिक्षित वर्ग तक की दिलचस्पी न थी। वैज्ञानिक सिद्धियों का
तव॒ तक कोई विशेष महत्त्व न समभा जाता था, जब तक तत्कालीन संसृति-
विज्ञान पर उनका विशज्येप प्रभाव न पड़ता हो, और वे समुद्र में फेंके गए कंकड़
के समान लुप्त हो जाती थीं ।
वैज्ञानिक उत्सुकता का ज्वार क्यों और कैसे बढ़ने लगा ? ये दोनों बेहद
दिलचस्प और कठिन ऐतिहासिक प्रदइन हैं। इनके उत्तर सरल नहीं हैं। विज्ञान के
उपाकाल के सम्बन्ध में कोई भी व्याख्या एक या दूसरे जटिल तथ्यों--जो स्पष्ट
रूप से हमारे युग का निर्माण कर रहे थे--पर अनुचित महत्त्व देने से गलत हो
जाएगी । मैंने मध्य यूग की सभ्यता के एक इतिहासवेत्ता की यह घोषणा सुनी
है, कि मानववादियों ने आधुनिक विज्ञान के जन्म में कुछ भी योग नहीं दिया |
वस्तुत: उनकी गतिविधियाँ हानिकारक रही हैं । दूसरी ओर यह कहना कि
मानववादियों द्वारा पुरातन कृतित्व और आत्मा की पुनर्प्राप्ति विज्ञान के विकास
में एक निर्णायात्मक पहलू है, निश्चित रूप से अ्रतिरंजित है ।
स्वंमान्य है कि गैलीलियों ने युवावस्था में आकंमिदीज़ की कृतियों को पढ़-
कर प्रेरणा और विचार प्राप्त किये। इससे यह तक उपस्थित किया जा सकता
है कि विज्ञान के विकास में ज्ञान के पुनरुत्धान का बहुत अधिक हाथ था।
तीन सौ साल पहले गैलीलियो जैसी प्रतिभा और भुकाव वाले व्यक्ति के हाथ
में यूनानी पुस्तक का लातीनी अनुवाद नहीं आ सकता था। क्योंकि आर्क-
भिदीज का सव से पहला लातीनी अनुवाद विलियम आफ मोरवेकने किया
था, जिसका प्रकाशन 1543 में हुआ था। 1875 में सिकन्दरिया के हीरो की
पुस्तक के लातीनी अनुवाद के प्रकाशन ने जलशक्ित विषयक प्रक्रियाश्रों में रुचि
जागृत की ।
परन्तु प्राचीन संसार के साथ सम्पर्क शौर मुद्रण कला के आविष्कार के
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