जैन ज्योति | Jainjyoti

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Jainjyoti by पंढरीनाथ -pandarinaath

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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: १२) विगर धमंका मूल हाथमें लगता नहीं. कह। भी है- ^ भिभ्यालादि- मरलीसम यदि मनो बाल्मत्ति शुद्धादके' || धौत, छि गहुशापि शुद्धयति छुरापुर.प्रृर्णो घट ॥ ” भिध्यातवते म्नि हुवा भंतकाएण सम्यक्व बियर शुद्ध होता नहीं जस मते भरा हुवा घडा बहस बार बार शुद्ध जलसे घोनेपर भी वह शुद्ध नहीं हो जाता उसके अंदरका सभी मद्य बाहर गिरा देनेते ही शुद्ध होगा वैसा ही तीन मुढता भष्ट मंद रिति सम्यक्त्व होनस सत्याथे घमका मांगे मिलता है. इससे सबसे पहले मिध्यात्वका त्याग करना चाहिये तभी सत्याथ जेनागमपर अपनी श्रद्धा लाती हैं | प्रकाशक




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