नियमसार प्रवचन [चतुर्थ भाग] | Niyamsar Pravachan [Part 4]
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
172
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गाथां ४५६. १
र॒स्तेमें कोई जेन्न मिला। पास ही एक बफरी जा रही थी. तो ,राजाने
कहा ऐ भाई ! उस बकरी को पकड़कर यंहां ले आबो । घह उस बकरी वी
पकड़ कर ले आयः। राजा ने कहा कि लो यह छुरी है, इस बकरीको
अभी काट दो । तो उसने छुरी नहीं ली ओर राजाके मुफावले डटकर खड़े
-दोकरः कहा कि राजन यह काम तो एक जेनीसे नहीं हो सकता है। चाहे
कुछ भी दृश्ड दं) विन््तु जेनी से छुरी नहीं च्ठ सकतीं है किंसी जौवको
मारनेके जिए । तो बह प्रसन्न हुआ श्नौर कहा फि ठीक है, जैन भावक
অর दयालु होति है । ए
व्यमीहिंसा-- दूसरी हिंसा है. व्यमीहिंसा ! उद्यम कर, रहे हैं।
उद्यम वह करना चाहिए जो हिसा षाल्ला च्यम न हो । जेसे जूतोंकी हुकान/
घी की फमं, शक्करकी दुकान; हलंषायी की दुकान; -यहां , तक कि लोहे
तकका काम भी उसीमें शामिल सुना गया है । तो कुछ रोजगार जो हिंसा-
फारक हैं उनको करना नहीं) जो सहद्दी रोजगार हैं उन्हें करें और उसमें
भी जीवोंकी रक्षाका यत्न वनाये रहें) फिर भी फदाचित् कोई. जीष मर
जाय तो वह उद्यमीहिंसा फहल्ााती है। .
श्रारम्भी दिसा-- तीसरी हिंसा है श्रारम्भी हिसा! रोटी वनातेमे
चक्की चलातेमें, कूटने भे, पानी भरने जो घर गहस्थीके कायं हैः उनमें
सावधानी .रखते हुए भी कभी किसी जीत्रकी हरा हो जाय तो वह है
গ্াহম্মী দিলা ।
चौथी हिंसा है विरोधी दिंसा। कोई सिंह) कोई दुए ढ/कू आदिक
धंपनी जान लेने आये था अपना -सर्व॑स्थ धन लूटने आये या अपने
आश्िित अन्यजनों पर कोई आक्रमण करे तो उसका मुकाबला कफरनेमें
यदि उसक्री हिसा भी दो जाए -घात हो जाय तो उसे विरोधी हिंसा कहा
বাতাই। লিলা भयोजन . सापि, विचः ततया इनको मार डालना यह्
विरोधी हिंसा नीं है, यह तो संकल्पी हिसा है 1 साधुजन चासो प्रकारकी
दिसा्ोक स्यागी होते है । गृषटस्थजन एक संकत्पीर्दिसके तो स्यागी दोतते
ही हैं-शेप तीन हिंसाबोंके वे. यथापद) यथा बेराग्य त्यागी हुआ करते हैं ।
. हिंसारद्दित भोजनकी भक्ष्यता- भेया ! भोजन विधिम सु
प्रंधान लक्ष्य रक्खा जाता है. कि जीवदिंसा-न हो | देख भाल, कर चौंका
धोना ओर सब चीजें मर्यादित शुद्ध होना। दिनमें ही बनाना) दिनसें ही
खाना--ये सब अहिंसाकी प्रवृत्तियां हैं । कोई मलुष्य चीज तो-अ्रंशुद्ध खाये
ओर उस अशुद्ध चीजके खानेके पापको छिपानेके लिए छुवाछूत अधिक
बढ़ा दे तो वह धर्मंबिधिमें योग्य नहीं कद्दां हैं। छुवाछृतकी सर्वोधिक
जा
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