हमारे लेखक | Hamare Lekhak

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Hamare Lekhak by गजेन्द्र सिंह गौड-gajendra singh gaur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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হাতা লবদহ্যবিহ ३३ जयकृष्ण तथा पं० अयोष्यानाथ आादे कई प्रभावशाली व्यक्तियों के सहयोग से आन्दोलन किया। इसका फल यह हुआ कि सरकार को अपनी नीति में परिवर्तन करना पड़ा | राजा साध ग्रत्यन्त परिभमी, अध्यवसायी और लगन के आदमी ये । बह एक अच्छे घुड़सबार, साइती और कार्य-कुशल भी ये । লক কমান में गम्मीरता, उनऊ़े व्यक्तित में उदारता श्रौर उनके रइन-सहन में पद के अनुकूल मर्यादा थी। राज-भक्त होने पर भी उन्हीने तत्कालीन राष्ट्रीय समस्याओं को उपेक्षा भाव से नहीं देखा । राजा साइब की रचनाएँ राजा साइब साहित्यप्रमी मी ये । आरम्म में अनुवाद का कार्य करने से उन्हें इस दिशा में श्रच्छा श्रभ्या हो गयाया ] उनका यदश्रभ्यास बहुत दिनों तक बना रहा कदाचित्‌ इघी ने उन्हें साहिय-रचना की श्रोर प्रेरित किया । उन्होंने कोई परसिद्र मौलिक स्वना नही की। उदु, दिन्दी ओर मराठी में उसकी एक मौलिक रचना ष्वुलन्द शर का दतिदास हे । अनुवाद ৯ रूप में ही वह दिन्दी-जगत में अखतिद हैं। 'ताज्ञीरात द्विन्दा का हिन्दी-अनुवाद 'दड-सप्रह? उनकी प्रसिद्ध रचना है। उनको अन्य अनूदित रचनाओं में कालिदास कृत 'शबुवला' (०० १६१८), 'रघब्श'(सं> १६१३५) ओर भेषदृत” (सै० १६३६) का सर्वोच्च स्थान दै। उन्होंने 'रघुबशः का पहले गयाजुवाद किया या, पर बाद को उसका पयानुवाद भी आरम्भ किया । यह कार्य ८ सर्गों तक ही शे पाया যা কি उनका स्पर्भेयास दो गया । राजा खाइव की भाषा-नीति ५ व्‌ राजा सांहम की इन श्रमर कृतियों से उनकी सादित्यिक मता, उनकी कवित्व-शक्ति, उनके प्राश्डित्य थौर उनकी माया सम्बन्धी मम्नो- इच्ियों का यथाय॑ परिचय मिल जाता है। सस्कृत के ब्रतिरिक्त बजमापा, अंगरेजी, फारसी, धरबी, पराइृत, बैंगला तथा शुज़राती आदि के वद्‌ शच्यै जांनशार थे । हिन्दी-सड़ीबोली की तत्कालीन उमस्पाश्रों पर उन्होंने का माँति विचार किया था। माया ॐ मरन भर उच्च समप्र उदू' और टद




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