हिंदुस्तानी | Hindustani

Hindustani  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० | हिंदुस्तानी बड़ा ही अनुश्क्त शिष्य हो गया। इसी समय नदी की बाढ़ से फड-थडः शान बह गया, लोहितगिरि ( म&-पोर्गर ) पर बिजली गिरी, और देश में ढासों को बीमारी फैल गई । लोगों ने शोर किया, कि यह आचाये थे; उपदेश से रुप हुए तिव्बत के देवताओं के प्रकोप का फल है| लाचार इच्छा स रहते हुए भो सम्राद आचार्य को कुछ दिनों के लिए बांपस भेजने पर मजबूर हुए । कितने दी समय के बाद सम्राट ने झानेंद्र फो धमं-मंथों के संग्रह के लिए चोन, और सब-शि ( चीत >भिन्ठु को तीस साथियों के साथ आचार्ग शांतरक्षित को बुलाने के लिए भारत भेजा | ज्ञामेंद्र के चीन से लोटने पर भी जब आचाये नहीं आए, तो सम्राद ने झानेद्र को भी रवाना किया। आचाये शांतरक्षित ७५ बष की बुढ़ापे की अवस्था में भी घर्म-प्रचार के उत्तम अवसर को हाथ से कब छोड़ने वाले थे । वह फिर तिब्बत पहुँचे । अद्मपुत्र की उपत्यका के चृसम्‌-यस्‌ ( सम्‌-ये ) में उन का निवास कराया गया | यद्यपि बौद्धघम का तिब्बत में रेण भायः दो सौ वर्ष पूष हुआ था कितु अब तक न कोई भोट-देशीय मिन्नु बना था, ओर न वहाँ कोई मठ ही स्थापित हुआ था। राजा को इच्छानुसार आचाय ने ब्ह्मपुत्र से प्रायः दो मील उत्तर एक भूमि मठ के निर्माण के लिए चुनी | यहीं मगधेश्वर महाराज धर्म- पाल (७६९-८०९ ई० ) के बनवाये डड्य॑त्रपुरी (विहार-शरीफ ) महाबिहार के नमूने ( १ ) पर बसम्‌-यस्‌ विहार की नींव डाली गई । विह्यर का आरंभ ७६३ ई०१ में हुआ, ओर समाप्ति उ५ ई० मे । मठ के मध्य में सुमेर की सि प्रधान विहार ( मदिर ) बनाया गया, ओर चारों तरफ चार महाद्वीप और आठ उप- द्वीपां कौ मति मिचुणओं के रहने के लिए बारह गूलिछः ( ढीप ) बनाए गए। इन में दस निम्न है--( १ ) खमस-गसुप्र-खड-गलिक , (२) बदुद-उदुल॒-सूंडरगू-प- गलिद्‌, (३) नेम-दग्‌-खिपस्‌-लद््‌-गूलि्‌ , (४ ) दयस्‌ -म-गूलिष्, (५) ऽदल-गसेर-खङ्‌-ग्लिङ ; (६) मि-गयो-बसम्‌-गतन्‌-गलिङ ;( ७ ) बूढे- १ जलशदश' ( ७०६३ ६० ) की जगह चर अश्चि-ाश्च गरुत से शिश्वा श्लु होता र




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