आधुनिक हिंदी का जीवनीपरक साहित्य | Aadhunik Hindi Ka Jivani Parak Sahitya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५ प्रमुख रूप स पत्र पत्रियाड्रों वा ही सहयोग रहा है। विभाजन करत समय समस्त पत्र साहित्य वा अवलोकन करते हुए इसको साहित्यिक, ब्रात्मक्थात्मत श्रयं चिवि मूलत वणनात्मक एवं विचार प्रधान पतरो की श्रेणी मं बाटा गया है । इन समो प्रकार के पत्र लेखका एवं उनकी इस साहित्य से सर्म्वा घत विश्वेषताओ कया वणन के ने का यूण अयत्त किया गया है । डायरी साहित्य के सद्धातिक पक्ष का भी उटाहरण सरित स्पष्ट वर्णन क्या गया है । हिटी साहित्य म डायरी साहित्य के प्रारम्मिक लेखक के रूप में बालमुकुद गुप्त को स्व्रीकार किया गया है। इसके पदचात्‌ हिल्दी पत्र पत्रिकाश्रा की छानवीन से जौ भी इस विषय मे सामग्री प्राप्त हुई है उसका क्रमिव विकास दिया गया है। इसके साथ ही प्रकाशित टायरियो एव डापरो सम्बन्धी पनो वो भी लिया गया है । डायरी सादित्य की पर्याप्त सामग्री मुझे हिंदी पत्र-पेत्रिकाओों में प्राप्त हुई है जिनके ताम मैंते मथास्‍्थान दिए हैं । पडित सुदरुलाल तिप्राठी झौर डा० धीर द्रव वर्मा को हिंदी डायरी साहित्य का सर्थेट्गप्ट लेखक माना जा सकता है। डा० धीरंद्र व्मावी डायरी यद्यपि उनके सम्पूण जीवन का परिचय नहीं दती परततु उसम जी विशेषताएँ प्राप्त होती हैं वे किसा भी डायरी म नहीं पाई जाती । उबत वियेषताझो को देने वा प्रयास किया गया है। समस्त डायरी साहित्य क विभाजन लेखक के अनुसार, विपय वस्तु बे प्रनुसार एवं स्थानहेतुकादि के प्राधार पर किया गया है।.... চর दम समस्त जीवनीपरक साहित्य व विवेचन के पश्चात अष्टम भ्रध्याय में ,मैंने यह टिखलाने का प्रयत्त किया है कि भ्रधुक प्रमुक काल मे विस किस विधा की/वियेपहूप से प्रगति हुई भौर कया हुई ? जीवनी प्रात्मक्था, रेखाचित्र, पत्र एव डायरी साहित्य था क्सि काल म॑ इन विभिन विधाओ्रो का विशेष रूप से ध्रादुर्माव हुआ वयोकि इनका विकास या वियेष प्रगति तालातीन परिस्थितियों के अनुवृत थी। मारतेदु युग, ्विषेर गुम एव वतमानकाल कौ समस्त पुरिस्थितिया का विवेचन বন हुए एव लेमे पर इव परिस्यितिफा क সমান বিদ্বাত তে ছল जीदनीपरक साहित्य की विधाप्रा को विशेष प्रगति का मी वणन विया गया है। इसक॑ पश्चात्‌ साहियेतिहासो कै प्रालार मे जौवनोप्रक साहिप्य का कया महव है इसत सवप्रयम मौलिक विववन विया गया है। गार्सा द तासी स डा० हजारीप्रसाद द्विवेदी तवः क इतिहासा तक सभी साहिय के इतिहासों के विश्वेषण व दारा यड्‌ स्पष्ट कणे कर प्रयत किया गया है कि इन इतिहासवारा न उसी भी लेखक वे जीवनीपरक त्ता की भूमिका का पूण तया निवगा नहा किया है। इनकी जीवनीपरक एतिहासिक्ता की सीमा वश जम तिथि गम स्थान ब्रादि तक ही सीमित रही है। इनिहासक्र तो देश की परिस्थितियां वा वणन बरव उनका श्रमाव तल्वालीन साहित्य पर दिखलाता है 1 वह विसी विशेष व्यक्ति वे सम्पूण व्यक्तित्व वा विश्लेषण नही बरता । उपयुक्त विवेचन ऋ उपरात जीवनोपरख साहिप्य कौ महत्ता को सक्षेप म वणन पिया यया है ।




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