मनुष्य के लिए सच्चा सुख किस में है ? | Manushya Ke Lie Sachcha Sukh Kis Mai Hai ?

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१५) भौर तप करने के उपरान्त प्रत्त में मतुथ को प्रा जीते है। मनुष्य को प्राप्त होते. हैं। उन मे बिया सखन मुख्य है | हवितीय॑ राजमी सें वह हैं थे अपरिभित इन्द्रियों के भोग. से होता' है वह लौकिकं श्रोर पारनौकिक ,टोनो विषयों में मनुष्य को नष्ट करता है| प्रधंम वो वह भज्ञान से प्राच्छादित हो कर परमसषना' ड गि जे! कुछ मतु के जोधन का लाभ है इन्हीं सिथ्या सखो मे है, परन्तु जवर वह भरन्त चण संगुर भौर ছা /| भिद्दे होतें हैं, और उस के रोर भोर आत्मा को नष्ट कर डाल- ते हैं, तो वई भ्रन्त को पंश्चाताप करता है कि हाथ में मे जीव- न व्यथ खोया, तामसी सुख वह জী परम घन्नानो सूख सोने भरालस्थ' नोव दिसा प्रथश सादक्ष ब्रस्तु जेसे भंग चरस गांजा अफो- मं सदरा সাকি है खने में मानते हैं, बच अरे और प्रक হানা बुरे हैं इन्ही नष्ठ व्यवहारों से मनुष्य अपना बथ थे कर्तव्य धर्म भून कर भोर पिद्या होन हो कर पश तुल्य डो जाता है| ... -ह मित्रों! न चिद्याध्यवन करते हैं वहो वुद्धिमान्‌ তীর के कारण, मनुष्य जाति में अग्रगग़्य 'होते हैं, वहो ज्ञानो होने. से भद्दा सुखी रहते हैं, वह य्रतूष प्रवनोशन “करने के कारण सानो सम्ार के मवरेगोःभोर युगो कै महात्मा दुदिभान्‌ भ्रौर च्नानौ स॒ननां से सत्संग करते रहते हैं। क्यों जि जिन के स्न्दर लाभ कारी लेख विद्यमान हैं वह मदा चिरंजोव हैं, अब. विचारिये जव धहों*सुसंयोग मे किमी क सुजन का संग प्राप्षदहो जात तो वा परमानन्द प्राप्त होगा है, वह धन्य हैं, महाधन्य हैं, লিন को विद्या हारा सदा .स'मरार के ओर सब युंगों के महान मतुरुपों के संत्स ग का अनड प्राप्त होता रहता है, विद्याही केवन एक द्वार हे जिम शे एंशरो मंध्टि के चर्मतंआर दिंखाई प- इती हैं बह परम सुख वाइने में नहों आ सक्ता इम को वहों सृजन जानते. हैं जिन फो नित्य इमका अनभव होता पहता है ।




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