महावीर वाणी भाग २ | Mahavir Vaani Vol 2

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Mahavir Vaani Vol 2 by रजनीश - Rajnish

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आचार्य श्री रजनीश ( ओशो ) - Acharya Shri Rajneesh (OSHO)

ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पल्ले कुछ प्रश्न एक मित्र ने पूछा है, मनुष्य जीवन है दुर्लभ, लेकिन हम आदमियों को उस दुर्लभता का बोध क्यों नहीं होता? श्रवण करने की कला क्या है? कलियुग, सतयुग मनोस्थितियों के नाम है? क्या बुद्धत्व को भी हम एक मनोस्थिति ही समझें? जो मिला हुआ है, उसका बोध नहीं होता । जो नहीं मिला है, उसकी वासना होती है, इसलिए बोध होता है । ढांत आपका एक टूट जाये, तो ही पता चलता है कि था । फिर जीभ चौबीस घंटे वहीं-बहीं जाती है । दांत था तो कभी नहीं गयी थी; अब नहीं है, खाली जगह है तो जाती है। जिसका अभाव हो जाता है, उसका हमें पता चलता है । जिसकी मौजूदगी होती है, उसका हमें पता नहीं चलता । मौजूदगी के हम आदी हो जाते हैं। हृदय धड़कता है, पता नहीं चलता, श्वास चलती है, पता नहीं चलता । श्वास में कोई अड़चन आ जाये तो पता चलता है, हृदय रुग्ण हो जाये तो पता चलता है | हमें पता ही उस बात का चलता है जहां कोई वेदना, कोई दुख, कोई अभाव पैदा हो जाये । मनुष्यत्व का भी पता चलता है, हम आदमी थे, इसका भी पता चलता है जब आदमियत खो जाती है हमारी, मौत छीन लेती है हमसे । जब अवसर खो जाता हे, तब हमें पता चलता है । इसलिए मौत की पीड़ा वस्तुतः मौत की पीड़ा नहीं है, बल्कि जो अवसर खो गया, उसकी पीड़ा है। अगर हम मेरे आदमी से पूछ सकें कि अब तेरी पीड़ा क्या है तो वह यह नहीं कहेगा कि मैं मर गया, यह मेरी पीड़ा है। वह कहेगा, जीवन मेरे पास था और यों ही खो गया, यह मेरी पीड़ा है । हमें पता ही तब चलता है जीवन का, जब मौत आ जाती है । इस विरोधाभास को ठीक से समझ लें । आप किसी को प्रेम करते हैँ । उसका आपको पता ही नहीं चलता, जब तक कि वह खो न जाये । आपके पास हाथ है, उसका पता नहीं चलता, कल टूर जाये तो पता चलता है । जो मौजूद है, हम उसके प्रति विस्मृत हो जाते है । खो जाये, न हो, तो हमे याद्‌ आती है । यही कारण है कि हम आदमी की तरह पैदा होते हैं तो हमें पता नहीं चलता कि कितना बड़ा अवसर हमारे हाथ में है। मछलियों को, कहते है, सागर का पता नहीं चलता । मछली को सागर के बाहर डाल दे रेत पर, तड्फे, त उसे पता चलता है । जहा वह थी वह सागर था, जीवन था; जहां अब वह है, वहां मौत है ।




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