उत्तर भारतीय सौर मंदिर मिथकों और प्रतीकों का अनुशीलन | Sun Shrines In North India Interpretation Of Myths And Symbolisms

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Sun Shrines In North India Interpretation Of Myths And Symbolisms by महेंद्र कुमार उपाध्याय - Mahendra Kumar Upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सबसे अधिक प्रचलित प्रकार है। इसके अतिरिक्त पहिया, स्वस्तिक, कमल अन्य प्रतीक थे। प्रागितिहासिक काल मे सूर्य का मानवीकरण नही हुआ था। पाषाण की चित्रकला, पिकलिहल के प्रमाण, यूरोपियन आकेलाजी के तथ्यो से यह कहा जा सकता हे कि यदि ओर प्राचीन नही तो नवपाषाणकाल तक सूर्य पूजा का प्रारभ माना जा सकता है। आद्यैतिहासिक युग मे सूर्य पूजा का भौगोलिक विस्तार समस्त उत्तरी भारत मे जान पडता हे' क्योकि इस युग के सूर्यं के बहुत से प्रतीको को उत्तर भारत के विभिन्न राज्यो मे दूढ निकाला गया हे। दक्षिण भारत मे भी प्रमाण मिले हे । सूर्य पूजा पर विदेशी प्रभाव के प्रश्न का उत्तर निश्चितता के साथ नही दिया जा सकता, क्योकि प्रमाण नगण्य हे | सूर्य पूजा सामान्य रूप मे ही थी पन्थ का रूप नी था। अभी तक किसी सूर्य प्रतिमा या मदिर का प्रमाण सामने नही आया हे। साथ ही हडप्पा सस्कृति की अपठनीय लिपि के कारण इस युग की सूर्य पूजा के यथार्थ स्वरूप पर प्रकाश डालना असम्भव हे । वेदिक काल से आकाशगगा मे दिखने वाले सूर्य के विषय मे लिखित जानकारी प्राप्त होती हे {ˆ पूर्वविदिक काल की सूर्यपूजा मे सूर्यदेव के दो रूप विकसित हुये । प्राकृतिक स्वरूप का ऋवेद्‌ मे बारम्बार निरूपण हुआ है।“ सूर्यं पूजा का महत्व उसके प्राकृतिक गुणो के कारण स्वीकार किया गया हे । ऋग्वेद मे सूर्य का गौरव प्रकाश के स्रोत, दिन निर्माता“ के रूप मे माना गया हे। इस स्वाभाविक भौतिक रूप के साथ ही सूर्य का अध्यात्मिक नैतिक रूप भी विकसित 1 श्रीवास्तव, वी सी, सनवुर्शिप इन एन्सियेन्ट इण्डिया , पृष्ठ 354 2 पार्थ, ए , रिलीजन्स आफ इण्डिया, पृष्ठ 256 हापकिन्स, ई डब्ल्यू दी रिलीजन आफ इण्डिया पृ 41 3 मेकडानल, वैदिक माइथालाजी पृष्ठ 2 ओल्डेन वर्ग, डिए-रिलीजन डिस वेद , पृष्ठ 59 1-94 4 सूर्य का नाम “दोस का अर्थ चमकना है। (6)




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