आत्म आलोचना | Aatama Aalochana
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
333
श्रेणी :
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माणकमुनिजी - Manakmuniji
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सेठ दलीचंद ऊंकारलालजी रांका - Seth Dalichand OOnkarlalji Ranka
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आलोचना-कुछक ও
मणुएसु वि जे जीवा, जि््भिदिय-मोहिण-मूढेणं ।
पारद्धि-रमंतेण, विणासिआ ते वि खामेमि ॥१३॥
मनुष्य-योनि में उत्पन्न होकर, मेने श्सनेन्द्रिय के
कारण मग्ध भौर मख बनकर तथा आखट-क्रीदा के दास
दिन जीवों का विनाश किया हो, उनको भी खमाता हूँ।
फास-गिद्भेण जे चिय, पर-दाराइ-गच्छ माणेण ।
जे दूमिअ-दृहविआ, ते विअ तिबिहिण खामेमि ॥ १४॥
मेंने स्पशे-इन्द्रिय के विषय मे आसक्त होकर,
परस्री-गमन आदि के छारा जिन जीवों को दुमन-पीड़न से
दुःखित किया हो, उन्हे भी खमाता है ।
चकक््खुदिय-घार्णिदि-यसोईइदिय-वसगएण जे जीवा |
दुक्खंमि मए ठविआ, ते वि अ तिविहेण खामेमि ॥१५॥
मैंने चक्षु, नाक और कान के वशीभूत होकर, जिन
जीबों के दुःख में डाला हो, उन्हें भी खमाता हूं ।
सामित्त लहिऊरणं, जे बद्धा घाइया य में जीवा।
सवराह-निरवराहा, ते वि अ तिविहेण खामेमि ॥१६॥
मेने स्यामिख या सत्ता पाकर, जिन अपराधी-निर-
पराधी जीवों कोचन्दी बनाए ओौर मारे হাঁ, उन्हें भी खमाता द|
यक्कभिरुण आणा, कारबिआ जे उ साण-भद्लेण ।
तामम--भाव-गएण, ते वि अ तिविहेण खामेमि ।१७
भेने अपनी आज्ञा का इछंघन करने के कारण
मान भग दोन से क्रोषित टोकर, जिन जीं क साथ जवरन
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