ऋग्वेद का सुबोध भाष्य : भाग 1 | Rigvedka Subodh Bhasya Part-i
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
716
श्रेणी :
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No Information available about श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)यू० ४७०४ से०, 1०६० 1
१९ महन. सुपारः- पोते उत्तम पार खजा
ˆ इतने पमन्त्र-याययोंसे यढा ही बोध दिया है। सुरक्षा
करेया, घनवान् गोशोंवाय पाछन अवश्य करें क्षर सौमभोका
दान भी दें, भपनी बुद्धि सुसेस््कारसेपत्न करें भौर दूसरोंको
उत्तम सलाह दें, कपने भित्र प्रेएट वस्तुकां प्रदान कर,
हूसरोंको सुस दे दें, अपने झ्रुका नाश करे, থু शायसे
लडनेवाखैकी सहायता करं, सपने धनोंफा उत्तम दान करे,
धनी सुरक्षा कर, हुःपोते पार दोनेकी योजना करं । ये
उपदे दम सूक्तसे আন্তুত্বাী मिर्ते हैं ।
पायक दस्र वरह मन्ये पदपदृका मनन करं मौर उनसे
भिरनेवासा बोध अपना रे ! ,
हस सत्तमे ' इन्द्रे दषं दधानाः देखा मस्त्रभाग है,
এ इन्द्रकी उपासनाका धारण करनेवाले ! ऐसा इसका आर्य
है। इससे पता चलता है कि इन्द्की उपासनाऊा ब्त घारण
किया जाता था। इसी सूक्तके ५ वे मन्त्रम ( निदः > निन्दक्
है। थे समवतः इन्क्रकी उपासना करनेवाछोंक्रे श्रोही या
मिंदृक होंगे। थे दूर भाग जाँ भीर हम इच्दकी उपासना
सथासांग करें । कागेके छठे मन्त्रमे कहा है कि ये ही श्र
करं करि তুম इन्द्रकी उपासनासे (सुभगान्) भाग्ययात् बच
गये हैं। इन्द्रकी उपासना करनेवालोंका भय बढ़ता है
यह देखकर अन्य छोग भी इस उपासनाकफा धारण
करेंगे । यह भाराय यहां दीसता है 1
इन्द्र
(५१-१०) सथुष्छन्दः वैश्रामित्रः 1 इन्दः । गायत्री ।
आ स्वेता ति पीदतेन्द्रमभि प्र गायत 1
सखायः स्तोमवादसः॥ २॥
पुरूलम् पुरूणामीशानं वार्याणाम् ।
इन्द्रं स्मेमे खा सुमे ५२१५
सघानो योग भा भुवत्् स राये स पुरंध्याम् ।
गमद्वाजेभिरा स नः ॥३॥
यस्य सस्ये वृण्वते दर समत्सु सथवः।
हस्मा इस्द्राथ गायत # 0
सुतपा सुता दम श्यचये। यन्ति यीतये ।
समासे दध्यास्िरः ४५५
स्यं सुतस्य पीतये सदे युद्धे अक्षथाः ।
इन्द्र स्पेष्ठयाय शुक्रलो ॥ ६१
ভরা হজ
(१५)
आ स्पा विशन्त्वादायः सामास इन्द्र मि्लेण:।
श॑ ते सन्तु प्रचेतेस ॥ ७ ॥
त्वाँ स्तोमा अवीवृधन्त्वामुक्या शवकतो ।
त्वां वर्धन्तु नो गिरा ॥ ८ |
अध्षिवोतिः सनेदिर्म बाजमिख्धः सहस्तिणम।
यस्मिन् विश्वानि पौस्या ॥ ९ ॥
मा नो मर्ता अमि हुहस्तमूनामिन्द्ठ गिर्यणः ।
ईशाने ययया चधम् ॥ १०॥
अन्ययः- ই स्तोमवाहसः सखायः { आ तु आ ईतः
निषीदत, द्द অমি স মার 85 ॥ জা सोग सुते
पुर्लभे, चरूणां वार्याणां ईशाने इन्दं ( आभि प्र गायत)
॥ २॥ सर घ नः योगे, सः राये, स पुरंध्यां भा भुवत् । सः
बाजामिः नः भा गमत् ॥ ३ ॥ समत्सु यस्य सेस्थे इरो
दत्रः व वृण्वते, লহ इन्द्राय गाम ॥४॥ दमे सुनः
शलयः दध्यादिरः सोमाप्नः सुपि तये यन्ति ॥ ५॥
ছু सुक्रतो हन्य ! स्वं सुतस्य पीतये जगेष्व्ायं सराः व्रः
शजायथाः ॥ ६ ॥ ই गिर्वणः दृः! सोमासः भरातरः त्या
धाविशन्ठ॒, पे प्रचेतसे शे सतत ॥ ० ॥ है शतफतों ! सवं
स्तोमा, स्या उक्धा अवीदधन, गः गिरः व्वा वन्तु ॥ ८॥
धक्षितोतिः दन््ः यस्मिन् विधानि पोष्या सदि इमं
बाज समेत ॥ ९ ॥ हे गिवेणा इन्द्र ! मर्ता। ना तनूनों मा
कमिन्, दकाः वधं यवय | १० ॥
আধ ই হয पाक पिमो ! थानो, यो भामो) चेमे,
और इन्द्के द्वी स्वोन्न गाशों ७ १॥ सबके द्वारा मिलकर
सोमर निकालनेपर, ष्टोम प्ट, शुत पाल रसनेयोर्त
धने स्वामी, द्धक ( स्तुतिका गान करो )॥ २॥ वही
इन्द्र निश्चयसे हमें प्राप्तन्यकी प्राप्ति करानेमें, धन-प्राप्तिमें
জী विशाल उद्धिः करनेमे सदप्यक दोवे, वद अपने अनेक
साम्ये साथ हमारे पातत आ जावे ॥३ # युद्धोमें जिसके
খে घोड़े जुत ज्ञानिपर दाप्तु मिसकी पकड़ भर्दी सकते,
उसी इन्दका काध्यगायन करो ) ४ ॥ ये सोमरस छान कर
पावित्र किये भर दही मिलाकर सोम पीनेवाले इन्दके पानिके
ভিন सिद्ध हुए हैं ॥ ५ ॥ है उच्तम कमे करतेवाले इन्द्र?
লু सोसरस पीनेके लिये और श्रेष्ट होनेके छिये सम्बह दी
बढ़ा हो गया है॥ ६॥ दे स्ुति-योग्य इन्द्र ! ये सोमरस
तेरे জন্য সনি हों भीर तेरे चिचको सामस्द देते रहें॥०॥
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