आत्मकथा | Aatmakatha
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
240 MB
कुल पष्ठ :
903
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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मेरे पूर्वज
संयुक्त प्रान्त में कोई जगह अमोढ़ा नाम की है । सुनते हैं कि वहां कायस्थों की
अच्छी बस्ती है । बहुत दिन पहले वहां से एक परिवार निकलकर पूरब चला और
बलिया में जाकर बसा । लम्बे अरसे तक बलिया में रहने के बाद उस परिवार की
एक शाखा उत्तर की ओर गई और आजकल के जिला सारन (बिहार) के जीरादेई गांव
में जाकर रहने लगी । दूसरी शाखा गया में जाकर बस गई । जीरादेई-शाखा के कुछ
लोग भी थोड़ी ही दूर पर एक दूसरे गांव में जाकर बस गये । जीरादेईवाला परिवार
ही मेरे पूर्वजों का परिवार है । शायद जीरादेई में आनेवाले मेरे पूर्वज मुझसे सातवीं
या आठवीं पीढ़ी में थे । जो लोग जीरादेई में आये थे, वे गरीब थे और रोजगार की
खोज में ही इधर आ गये थे । उस गांव में कोई शिक्षित नहीं था और उन दिनों भी
कायस्थ तो शिक्षित हुआ ही करते थे, इसलिए गांव के लोगों ने उनको वहां रख
लिया । प्रायः उसी समय से उन लोगो का सम्बन्ध हथुअराज से हो गया, जहां कोई
लिखने-पढ़ने की छोटी-सी नौकरी उनमें से किसी को मिल गई । हथुआ उन दिनों
इतना बड़ा राज नहीं था और न उसकी इतनी आमदनी ही थी । उसके रईस का
मुख्य स्थान भी वह बाद में बना, उन दिनों तो कहीं और ही था ।
हथुआ-राज के साथ मेरे पूर्वजों का सम्बन्ध कई पीढ़ियों तक चलता रहा ।
मालूम नहीं कि लोग किस पद पर थे, पर जह्ांतक खबर है, वह कोई ऊंचा पद नहीं
था। गांव के घर भी फूस के छप्पर के ही थे। जीरादेई में वे लोग एक दूसरे कायस्थ
जरमीदार की, जिनकी बड़ी जमींदारी थी, रैयत थे और हम लोग आजतक कभी भी
'अपने गांव की जर्मीदारी में हिस्सेदार नहीं हुए, यद्यपि पीछे हमारे पूर्वज और कई गांवों
के जर्मीदार हो गये ।
मेरे दादा दो भाई थे । उनका नाम धा मिश्रीलाल । उनके बड़े भाई थे
चौधुरलाल । मिश्रीलाल का देहान्त बहुत छोटी उम्र में ही हो गया । उनके केवल एक
लड़के थे महादेवसहाय, जो मेरे पिता थे । चौधुरलालजी के भी एक पुत्र थे
जगदेवसहाय । मिश्रीलाल की आकस्मिक मृत्यु कम उम्र में हो जाने के कारण मेरे पिता
के साथ चौधुरलालजी का बड़ा स्नेह-प्रेम था । जगदेवसहाय और महादेवसहाय दोनों
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