चातुर्मास का महत्त्व | Chaturmas Ka Mahattv

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Chaturmas Ka Mahattv by हीराचन्द्र - Heerachandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८५ 4 जिससे श्रावक वर्गकों अपने फर्तव्य पथका अच्छी तरह ভি शेन हो जानेसे शिघ्रदी उनको धमेके विषयमे उत्कट भिरि হা होती है भौर उनके अन्त करण भी शुद्ध व सरल हो जानेसे निशय घृत्ति से क्षमत क्षामणा पुर्वेक सावत्सरिक प्रतिकमण কানে हैं, यद्दो धरवृत्ति मुनिधर्ग की भी है जिससे सघर्मे सपकी बुद्धि व एकता का अविच्छिम्न प्रवाद बहने लगता है। अहा | हुए | हु! यह पयूंषण पर्द घय हे, वस्तुत पकर घ प्रेमोत्पत्तिका एफ असाधारण कारण है, इससे ही इसफो पर्माधिराज कहते हैं और जैनोमें इसका आद्रभी जैसा चाहिये पैसाही है, जिस समाममें एकता व परस्पर सपका अभिच्छिन्न प्रवाह दता हो चद साधारणसे साधारण भी समाज फक्‍्योंन हो किन्तु अव्यहो समयमे वदी उन्तत सणरृद्ध च सारम भद्रै भूतं হী जाता है, इसमे कोई आश्ध्यं नहीं है, पूव समयमे इसरो एफताके तन्तुओंसे बंधे हुवे जैन सघका ज्षो अन्यो पर प्रभाव पटतां था पथ च एकता कारण हौ उन जैनोने नैतिक व्याय- हारिक धार्मिकादि अनेक विषयोमें जो अपनी उन्ननिकी थी जिस से ही उनका जो संसारमे गौरच था था अनेक उनके प्रतिस्पर्न्धि यॉके रहते हुये भी सदा ससारमें अज्ेय बने रहे--डसी तरह डसके पूज्य मुनिगणोका भी सघटनात्मक शक्तिके कारण व उनके उदात्त चारित्रक प्रभावसे जो संसारमें उनका मान था प्यच जिनके चरणोंमें पढ़े बढे सप्चाट भी अपने मस्तकोंकों रखते हुये छेश मान भी हृदयमे संकुचित न होकर प्रत्युत अपनेको घत्य-..._




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