छायावाद में आत्माभिव्यक्ति | Chhayawad Mein Aatmabhibyakti
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29 MB
कुल पष्ठ :
378
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)काव्य में आत्माभिव्यक्ति : सिद्धान्त-निरूपण
कवि भौर कविता
कवि ओर कविता--ये दो सज्ञाये भौर इनका पारस्परिक सम्बन्ध युगो से
चिन्तको का केन्द्र रहा है। कवि का व्यक्तित्व कैसा होता है, काव्य-सजन मे
उसके व्यक्तित्व की क्था भूमिका है, कविता क्या है, कविता क्यो और किसके
लिए लिखी जाती है, कवि एव कान्य की सामाजिक उपादेयता क्या है-भादि
अनेको प्रश्न अनेक प्रकार से उत्तरित होकर भी कालान्तर ओर प्रकारान्तरसे
भनुत्तरितं चले आ रहै है ।
भारतीय चिन्तन मे कवि प्रजापति है, ब्रह्मा है, ईश्वर के अनेक नामो मे से
एक नाम कवि ই | कही-कही कवि को प्रजापति से भी उच्चतर माना गया है,
क्योकि प्रजापति की सृष्ठि मे षड्रस होते हैं जब कि कवि की सृष्टि में नव
रस ।* ऋचषेद में आत्मा के लिए 'कवि' शब्द का प्रयोग हुआ है ।* गीता में
आत्मा के अमूर्ततम एवं सुद्भतम रूप को कवि कहा गया है ।४* शुक्ल यजुर्वेद में
परमेश्वर के अर्थ में कवि' शब्द का प्रयोग है 'कविर्मनीषी परिभ स्वयभ् ”
श्रीमद्भागवत में ब्रह्मा को आदि कवि माता गया है-- तिने ब्रह्म हृदाय आदि
कबयो (१।१।१)” रघुवशम् में कालिदास विष्णु को प्राचीन कवि” कहते है ।*
क्रवि'! शब्द इतना व्यापक हो गया था कि ऋषियो, शास्त्रज्ञों और वैद्यो के लिए
१ “अपारे काव्यससारे कविरेक प्रजापति । यथास्मे _रोचते (विश्व तथेद
परिवर्तते ।” आनन्दवर्घन--ध्वन्यालोक, पु० ५३०
२ रस सिद्धान्त और सौन्दयंशास्व--डां° निर्मला जैन, पु० ४२८--४२६
३ कवि केतु धासि भानुमग्रे (७।६।२)
कवि कवित्वा दिवि श्पमास (१०।१२४७)
४, कवि पुराणमनुशासितारमणोरणीयासमनुस्मरेद्य ।
सर्वस्य घातारमचित्यरूपमादित्यवर्ण तमस परस्तात् ॥ गीता, अ ८ श्लोक &
५४, पुराणस्य कवेस्तस्य वर्णस्थानसमीरिता ।
बभूव कृतसस्कारा चरिताथंव भारती ॥| रघुवश १०।३६
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