छायावाद में आत्माभिव्यक्ति | Chhayawad Mein Aatmabhibyakti

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Chhayawad Mein Aatmabhibyakti by शशि मुदीराज - Shashi Mudiraj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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काव्य में आत्माभिव्यक्ति : सिद्धान्त-निरूपण कवि भौर कविता कवि ओर कविता--ये दो सज्ञाये भौर इनका पारस्परिक सम्बन्ध युगो से चिन्तको का केन्द्र रहा है। कवि का व्यक्तित्व कैसा होता है, काव्य-सजन मे उसके व्यक्तित्व की क्था भूमिका है, कविता क्या है, कविता क्यो और किसके लिए लिखी जाती है, कवि एव कान्य की सामाजिक उपादेयता क्या है-भादि अनेको प्रश्न अनेक प्रकार से उत्तरित होकर भी कालान्तर ओर प्रकारान्तरसे भनुत्तरितं चले आ रहै है । भारतीय चिन्तन मे कवि प्रजापति है, ब्रह्मा है, ईश्वर के अनेक नामो मे से एक नाम कवि ই | कही-कही कवि को प्रजापति से भी उच्चतर माना गया है, क्योकि प्रजापति की सृष्ठि मे षड्रस होते हैं जब कि कवि की सृष्टि में नव रस ।* ऋचषेद में आत्मा के लिए 'कवि' शब्द का प्रयोग हुआ है ।* गीता में आत्मा के अमूर्ततम एवं सुद्भतम रूप को कवि कहा गया है ।४* शुक्ल यजुर्वेद में परमेश्वर के अर्थ में कवि' शब्द का प्रयोग है 'कविर्मनीषी परिभ स्वयभ्‌ ” श्रीमद्भागवत में ब्रह्मा को आदि कवि माता गया है-- तिने ब्रह्म हृदाय आदि कबयो (१।१।१)” रघुवशम्‌ में कालिदास विष्णु को प्राचीन कवि” कहते है ।* क्रवि'! शब्द इतना व्यापक हो गया था कि ऋषियो, शास्त्रज्ञों और वैद्यो के लिए १ “अपारे काव्यससारे कविरेक प्रजापति । यथास्मे _रोचते (विश्व तथेद परिवर्तते ।” आनन्दवर्घन--ध्वन्यालोक, पु० ५३० २ रस सिद्धान्त और सौन्दयंशास्व--डां° निर्मला जैन, पु० ४२८--४२६ ३ कवि केतु धासि भानुमग्रे (७।६।२) कवि कवित्वा दिवि श्पमास (१०।१२४७) ४, कवि पुराणमनुशासितारमणोरणीयासमनुस्मरेद्य । सर्वस्य घातारमचित्यरूपमादित्यवर्ण तमस परस्तात्‌ ॥ गीता, अ ८ श्लोक & ५४, पुराणस्य कवेस्तस्य वर्णस्थानसमीरिता । बभूव कृतसस्कारा चरिताथंव भारती ॥| रघुवश १०।३६




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