सामर्थ्य और सीमा | Samarthya Aur Sima

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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আগর জী सीमा | ७ टीक तरह से नहीं भोग पाए । उनङी प्त प्रौर उनके बच्चे बुलन्दशहर में संयुक्त परिवार में रहते थे । बाबू मिदुनलाल कुछ दिनों के लिए अपनी पत्नी श्रौर अपने बच्चों को अपने साथ बुला लेते थे। लेकिन शीघ्र ही उनके परिवार वाले उनके जीवन की अ्रभावों से भरी एकरसता से ऊब जाते थे और वे झ्रपने परिवार वालों की शिकायतों और माँगों से ऊब जाते ये । इस व्यक्तित्व-हीनता में भी तो एक प्रकार का व्यक्तित्व था उनका । उन्होंने श्रपने जीवन का एक लम्बा काल इन छोटे-छोटे स्टेशनों के _ एकाकीपन में बिता दिया था, यह एकाकीपन उनके जीवन का जैसे एक भाग बन गया था। पर यह सब कब तक ? यह सत्य था कि वे विवाहित थे। यह सत्य था कि उनके बच्चे थे। पर यह भी सत्य था कि उनकी उम्र ढलने लगी थी श्रौर उन्हे सहारे को श्रावश्यकता पड़ने लगी थी | एकाकीपन के प्रति उनका मोह टूटने लगा था । आखिर इस एकाकीपन के जीवन को उन्हें शक-न-एक दिन छोड़ना ही पड़ेगग । इधर पिछले दो-तीन वर्षों से वह यह श्रनुभन्र करने लगे थे कि श्रबश्रधिक्‌ दिन तक श्रकेले रहना उन्हें अखर जाता है और प्रागे चलकर श्रकेले रहना उनके लिए करिन्‌ होगा । इसलिए उन्होंने यह निर्णय कर लिया था कि नवलसिह की घरवाली के आ जाने के बाद वह अपने परिवार को भी बुला लेंगे । नवलपिह की आवाज़ से बाबू मिदुनलाल की नींद खुल गई । श्रा मलते हुए उन्होंने एक जम्हाई ली, फिर उठकर सुराही से एक गिलास पानी पिया । नवन्नसिह इस समय तक बरामदे से उठकर उनके कमरे में आरा गया था । उसने फिर कहा, “मास्टर बाबू, ऐसा लगता है कि सुमनपुर की तरफ से कोई मोटर भ्रा रही है । कार की घरघराहुट की आवाज़ श्रब श्रधिक स्पष्ठ हो गई थी। मिट्टुनलाल ने सुब्यवस्थित होकर कहा, “हाँ, श्रावाज़ तो मोटर की ही है, लेकिन वह यहाँ क्यों श्राएणी ? लखनपुर जा रही होगी वह। मील-भर पहले ही मुड़ जाएगी, लखनपुर की तरफ /# भला सुमना में मोटर आकर _ क्‍ र ह




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