द्विवेदीयुगीन पत्रकारिता और रचनात्मक लेखन का अन्तर्सम्बन्ध | Dvivediyugin Patrakarita Aur Rachanatmak Lekhan Ka Antarsambandh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
33 MB
कुल पष्ठ :
467
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)14
जो कुछ देखता है, उसकी यथातथ्य रपट लिख देता है । किन्तु साहित्यकार
की संवेदनशीलता इतनी चरम सीमा पर पहुंची होती है ि समाय पौर
जीवन की उन्हीं घटना को वह गदतम दृष्टि से देखता है जो उसके
बन्तर्मन में सृजन ~ प्रेरणा का कारण बन जाती हैं । साहित्यकार के लिए
यह भी आवश्यक नहीं हे कि किसी प्रत्यक्ष तथा यथार्थ घटना को देख कर
ही उसके मन में सृजन - प्रेरणा उत्पन्न हो । उसका अवचेतन मन इतना
संवेदनशील होता है, कि प्रत्यक्ष रूप से न देखने पर भी जीवन के किसी
आयाम से उसके मन में सृजन - प्रेरणा का उदय हो सकता है 11
इस विवेचन के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि जीवन - क्रम
त्था घटना ~ कम का साक्षात्कार पत्रकार के लिए पूर्ण रूप से तथ्यपरक होता
हे | किन्तु वही साक्षात्कार साहित्यकार के लिए ऋष्यो, ज्ञानियौ जर
>दव्य द्रष्टाजों जैसा अलौकिक होता है, जो दृष्टा - साहित्यकार के मन
मेँ सृजन की अकुनाहट उत्पन्न कर देता है । और यह सब - कुछ साहित्य -
कार के मन में अनजाते ही होता है, न्जस्कि संबन्ध मे क्यो, क्ब ओरकेसे
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