श्री धर्म्मकल्पद्रुम भाग ६ | Shri Dharma Kalpadruma Volume-vi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
282
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मायातर्थ । १६०
जब फिर देवताभौको दैत्योसे भय द्ोगा तव इस भयको छुम्ब्र লিগ
' धारण करफे उत्पन्न हुई मेरी ,शक्तियाँ दरण फरंगी। वाराह्दी, वैष्णघी, गौरी,
गारसिंही और सदाशिवा एवं श्रन्धान्य शक्तियाँ उत्पन्न होगी, है धक्षा! तुम अपने
काय्येकी करो | दे प्रह्मा । सदा बीज झौर ध्यानसंयुक्त दस नवषर मस्भ्रको
जप करते हुए तुम खब काय्योंकों फरो।
मन्त्राणाडत्तमोऽयं वे त्वं जानीहि थदामते ¡ }
\ हदये ते सदा धारयः सन्धैकामाधसिद्धये ॥
` ` इत्युक्तवा मां जगन्माता हरि प्राह शुचिस्मिता ।
, विष्णो ! ब्रज गृहाणेमां मदालच्मीं मनोहराम् ॥
खदा चन्तःस्थले स्फामे 'লানিলা नाऽत्र शशयः ।
क्रीड़ाथ ते सथा दत्ता शाक्ति! सब्योधेदा शिवा ॥
है महामते | इसको तुम मन्त्रोंमे उत्तम मन्त्र जानो और तुम सब राम
और श्रथोक्ती क्िद्धिके लिये सद्ा हृदयम धारण कयो । ब्रह्माजी फते है कि
घुभशनो चस प्रकार ककर जगत्मात्ता मदामाया पचित श्रौर मन्द मर्द हास्य
करती हुई विष्णुकों आशा रने लगी, दे विष्णो ! जानो इस मनोह महा.
तब्मीकों भ्रदण करो। मैंने क्रीडाफे लिये यह सर्व्वार्थदा मढ़ुतकूपिणी शक्ति
छुमको दी है, यद तुम्दारे सदा वच्तःस्थलमें रहेगी यद्द तिःलन्देद ই।
त्वयेये नावसन्तब्या साननीया च सब्वेदा ।
लक्ष्मीनारायणारुपो5य थोगो वै विहितो मथा ॥
` - जीवना कृता यज्ञा देवानां सर्न्बथा सया ।
अविरोषेन सद्धेन वर्तितव्यं धिभिः सदा ॥
` त्व॑ च वेधाः श्षिवरत्वेते देवा मदुशुएसम्भवाः ।
पान्था पूज्याश्च सर्व्वेषां सविष्यन्ति न सश्वयः ॥
इसका तुम अपमान मत करना, सव॑दा इसका मान दशना, मैने
ब लदमीनारायण योग किया है । मैंने स्वधा देवताओके जीवनार्थ ही ..
यहाँकी सष्टिकी है, तुम तीनोंकों खंदा' विसोधरद्वित संगसे' बर्ताव करता
साहिये। तुम, बरक्षा शोर शिव, ये तीनों मेरे शु्णोसे उत्पग्त हुए देवता हैं,
अतः सपोके मानवीय सौरः पूजनीय. हमे यह निःसंदेह है.।'
२ ।
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