कठिनाइयों में विद्याभ्यास | Katanaime-vidhabhyas

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Katanaime-vidhabhyas by गिरिधर शर्मा - Giridhar Sharmaझालरापाटन - Jhalrapatanनवरत्न - Navratn

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गरीबी विद्याम्यासम बाधक नहीं । ७ इस रौकको परा करनेके श्यि वह एथेन्स चला गया । जिस समय वह एथेन्समें पहुँचा, उसके पास केवल तीन सिक्ते ८ चँदीके ) थे । एेसी परिस्थितिमें उसे अपना पेट भरनेके लिये पानी भरना, बोझा उठाना आदि क्षुद्रसे क्षुद्र मजदूरीके काम करने पड़े । ऐसे ऐसे काम करते हुए भी वह अपना अम्यास बढ़ाता जाता था और अपने सुप्रसिद्ध गुरु झेनोको एक एक पेनी रोज देता था। झेनोंके मर जानेपर उसकी पाठशालाका वह प्रधानाध्यापक हो गया; परन्तु इस पदके मिल जाने पर भी वह मजदूरी करता रहा । यह उसका मुख्य सिद्धान्त था कि “ में पानी भरता हूँ और दूसरा जो कोई काम मिल जाता है उसे करता हूँ, परन्तु इससे में किसीके सिरपर बोझा नहीं होकर अपने तचज्ञानका अभ्यास बढ़ा सकता हूँ ।” वह बहुत ही गरीब था। उसके पास कोंटके नीचे पहननेको एक भी बस्तर नहीं था | एक समय वह एक सावे- जनिक मेलेमें गया | वहॉपर हवाके जोरसे उसका कोट फर फर कर उड़ने लगा | इससे उसका खुला बदन बहुतसे मनुष्योंके देखनेमें आया । उन्हें उसपर दया आई और उन्होंने उसे नीचे पहननेका एक वच्न दिया | वह इतना गरीब था, तो भी एशेन्सके मनुष्य सदा उसके साथ सम्मानका बर्ताव करते थे । प्रसिद्ध इटालियन लेखक जेली जातका दरजी था । इस पुरुषने लेखकके नामसे ऐसी प्रसिद्धि पाई कि यह फ्लोरण्टाइन एकेडेमीकी कौंसिलके उच्च और मानवाले पदपर नियुक्त किया गया और टस्कनीके प्रांड ड्यूकने इसे प्रसिद्ध तचलज्ञानी दतिके विषयमे व्याल्यानदाता मुकर्रर किया । यह इतने ऊँचे दरजेपर पहुँच गया तो भी अपना दरजीका काम न छोड़ता था । जब ऊपर कहे हुए एकेडेमी ( विद्यालय ) के विद्या- धियोके सामने इसका प्रास्ताव्रिक व्याख्यान हआ, तब इसने सामिमान




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