बंजारा लोकसाहित्य का मूल्यांकन | Banjaaraa Lookasaahitya Kaa Mulyangkan

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Banjaaraa Lookasaahitya Kaa Mulyangkan by पुष्पलता - Pushplata

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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পাও 117 / 4. 44 ভি কা ২৪ फस्ठें गाती हं,उत्सब,मेंठे, ऋतुएं पु परम्परा एँ गाता हा छोकगोतों की यह परपरा अत्यत प्राचीन ढ॒ 1पिरडितां को बधों बँधा ड़ प्रणाली पर चलनंवालों काव्यधार क सथ यथ समान्य उनपढ जनता के बीच एक स्वच्छंद आर प्राकृतिक मावधारा भी गीतों के स्य में चत्तते रहती ढ़ 1 ** छोकगीतों को यड्र मावधा रा अंडित प्रबहमान ढ । बस्तुत: ण्छोकगात न तो पुराना हांता ठढ् न नया | कह एफ जग्छी वृक्ष की भाति ह जिस्क्री जडें झुदुर अतीत को गहराई म दृढ़ 6, कितु जिसेस निरतः नई शास्रा ३ + प्रशाखाए पत्ते आर नए फड च्िसिति हरते रहते हे । सामान्य न রি # = ५ १ শী नदिय „ ५ न्तः सोकगौ्ती २ धरती गातो इ,परद्माड गाते हु, गाता हु, ज्नमाणा में ञ्वश्य परिवलन हता जाता ह, गल की माषा भी बदलती जाती ट्र, पर इनके प्राणक्तत्व में को इज्तर नहीं जाता क्योंकि छोकगीत आदि मानव का उल्ठाक्मय संगीत ₹ 1 অহ संगीत की अपरिवर्तनीय घा रायुगों से प्रवहमान ह 1 ह्बेतों में, नदिया, पहाडों,मंदानों, रास्तों या घरों में,विरद्र वेदना, हँसी मजाक में यह संगीत गीत बनकर जमकडों से फूट पडता हूं । नपु गीतो के साथ पिछले गीत घुढ जाते है । नह पीढी,नए माव,यहीगीतों की परस्यश हू । गीतों की यह परंपरा तब तक विध्मान रहेगी जब तक मानव का अस्तित्व रहेगा । मानव मन कीविभिन्‍न स्थितियों ने इस्मेंअपने ताने बाने बुने है। स्त्री पुसो ने भम्र इसके माधुय में अपनी धकान मिटाई ह । दृस्ती घ्वनि में बालक सोए हे,ज्वानों में प्रेम की मस्ती आई हु, बूढों ने मन बहठाए हूँ, वरशाणियों ने उपदेश पान किया ह विरहे युको ने मन की कर मिटाई है, व्थिवाओं ने अपने फ़ोगी जीवन में रस पाया हे,पथियों ने ककावट टूर कीह,किसानों ने अपने खेत जोते है 1 लोको धित खाक साहित्य के अन्तमत खोक्मानस कौ किप्नीभी फ्रार की कही गई उचित - खको त्ति कटरा एगी । का षिति अतुमवसिदुघ ज्ञान का बृहत्‌ कोर ह्‌ 1 इन्हें मानव ब्वान के বউ ভু লী কনা আলা ক লী ভগ आकारमें“ मामर में सागर मरने * की प्रवृत्ति काम करती हू । इनमें कथा तत्व नहीं होता ,कितु जीवन सत्य बडी छ्ली से फ्रंट होते हैं । लोको क्तियाँ की परंपरा अत्यंत प्राचीन है । वेदी ओर उपनिषदो में अके स्थ्ों पर इन्क्री उपलब्धि होती ₹ 1২ দিঘিতক तथा जातक कथाओमें भी इनका प्रयाग प्रचुर मात्रा में दुआ हु । संस्कृत साहित्य से ता ठाकाकितयों का अनुपम भंडार मरा पड़ा ह। हिंदी साहिप्य में ठोकाक्तियों का व्याफ




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