विज्ञान पत्रिका | Vigyan Patrika
श्रेणी : विज्ञान / Science
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
68
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ग्ब দিত देवेन्द्र हामा सम्मान अंक
शर्मा ने मुझे शुद्ध किया कि सही नाम 'रामन' ही है।
प्रो. वी.डी. गुप्त : छोटी छोटी बातों का भी
ध्यान रखना प्रोफेसर शर्मा की विशेषता थी। ऐसा न
होता तो गोरखपुर विश्वविद्यालय में शून्य से आरम्भ
करके इतना बड़ा विभाग कैसे बना पाते। मेरा सम्पर्क
कानपुर, इलाहाबाद, लखनऊ तथा इलाहाबाद चारों
नगरों में छात्र, अध्यापक तथा कुलपति के विविध रूपों
में रहा है। प्रोफेसर देवेन्द्र शर्मा भी मुख्यतः इन्हीं स्थानों
पर रहे अतः स्वाभाविक रूप से मेरा उनसे तथा उनके
इष्टमित्रों से सतत् सम्पर्क रहा। मेरा परीक्षक के रूप में
भी प्रायः गोरखपुर जाना होता था (कहने की आवश्यकता
'नहीं कि प्रोफेसर शर्मा ही आमन्त्रित करते थे) तथा
रहना प्रोफेसर शर्मा के यहाँ ही होता था। उनका तथा
उनकी धर्मपत्नी श्रीमती महिमा शर्मा का आतिथ्य का
सौभाग्य मुझे बार बार मिलता रहा।
डॉ. चन्द्र मोहन नौटियाल : लखनऊ में
मिलने के बाद तो प्राय: उनसे भेंट होती रही- उनके
निवास पर, व्याख्यानों में, विज्ञान प्रौद्योगिकी परिषद्
तथा बाल विज्ञान कांग्रेस के कार्यक्रमों में जिसकी
अध्यक्षता का हमारा निमन्त्रण भी उन्होने सहर्ष स्वीकार
किया |
एक अवधि में मेरा कहीं आना-जाना निजी
कारणों तथा कुछ व्यस्तता के कारण बहुत सीमित रहा
परन्तु जब भी, जहाँ भी हम मिले वे कभी मेरी तथा
परिवार की कुशलक्षेम लेना नहीं भूले। द
दूरदर्शन वाला पहला कार्यक्रम तो कतिपय
तकनीकी कारणो से रिकार्ड नहीं हो पाया परन्तु विज्ञान
दिवस के लिए एक विशेष परिचर्चा में उन्हें तथा कुछ
राष्ट्रीय शोध संस्थानों के निर्देशकों को परिचर्चा के
लिए आमन्त्रित किया तो प्रोफेसर शर्मा ने सहर्ष आकर
रिकार्डिंग कराई |
चाहे उनके निवास पर मिले या किसी कार्यक्रम
में उनका व्यवहार इतना मधुर तथा कोमल है कि पता
लग जाता है कि ये किसी को ठेस नहीं पहुँचा सकते |
परन्तु यहाँ यह भी स्पष्ट करना आवश्यक है कि मृदु
होने के स।थ साथ वे दृढ़ भी हैं, सिद्धान्तों पर समझौता
नहीं करते। अनुशासनप्रियता उनके व्यक्तित्व का अभिन्न
अंग है। दबाव से, शोर मचा कर या ऐसी किसी दूसरी
बात से उनसे अनुचित बात मनवा लेना संमव नहीं हे |
एक बार विश्वविद्यालय मेँ वे घंटों सब्र से चिलचिलाती
धूप में यूनियन के नेताओं की बात सुनते रहे परन्तु
उन्होने अपना निर्णय नहीं बदला । कड़ी धूप में खड़े
खड़े थक चुके नेता समझौते का मार्ग दूँढने लगे तथाः
हार कर हठधर्मिता छोड़नी पड़ी | जहाँ तक विनम्रता की
बात है, यदि वे कार चला कर जा रहे हों तथा कोई
नमस्कार करेतो वे कार रोक कर, स्टीयरिंग छोडकर
करबद्ध होकर अभिवादन स्वीकार करते हें ।
ड. चन्द्र मोहन नौटियाल : मेँ तो उनके
विद्यार्थियों के भी विद्यार्थियों की श्रेणी में आता हूँ। हर
तरह से इतना अन्तर होने के बाद भी मुझे स्मरण नहीं
कि कभी उनसे मिलने गए, परिवार के साथ या अकेले,
और वे मुख्य द्वार तक छोड़ने न आए हों। वे तथा उनकी
धर्मपत्नी दोनों अतीव स्नेही हँ । वृक्ष का फल के साथ
झुक जाने की बात यौ पूर्णतः चरितार्थ होती हे |
प्रो. वी.डी. गुप्त : प्रोफेसर शर्मा अत्यन्त
सुशिक्षित तथा सुसंस्कृत परिवार से हैँ तथा यही उनके
परिवार में झलकता भी है।
डॉ. चन्द्र मोहन नौटियाल : मैं प्रोफेसर
देवेन्द्र शर्मा जैसे व्यक्तित्व के सम्पर्क में आना शुभ
संयोग तथा सौभाग्य मानता हूँ। वर्षो पूर्व किन्हीं कुलपति
का प्रगल्भ तथा प्रमावशाली व्याख्यान सुनने के बाद
उनसे इस तरह नए स्थान पर भेंट हो तथा सम्पर्क होता
रहे तथा स्नेह प्राप्त हो तो किसे अच्छा नहीं लगेगा।
प्रो. वी.डी. गुप्त : प्रोफेसर शर्मा शतायु हों,
उनका वरदहस्त हम पर रहे तथा दिशा निर्देश प्राप्त
होता रहे, हमारी हार्दिक इच्छा है।
डॉ. चन्द्र मोहन नौटियाल : हम सभी की
यही मंगल कामना है।
कभी-कभी विज्ञानेतर चर्चा में मैं अपना मतभेद प्रकट *पूर्व कुलपति
भी कर देता तो उन्होंने कभी यह नहीं जताया (न ही इलाहाबाद विद्ववविद्यालय
अनुभव किया) कि केवल कनिष्ठ, कम आयु का होने या *+चवैज्ञानिक,
ऐसे किसी भी कारण से मैं मत बदलूँ। बीरबल साहनी पुरावनस्पति अनुसंधान संस्थान
प्रो. वी.डी. गुप्त : मैं भी पूर्णतः सहमत हूँ। लखनऊ
जुलाई 2002 विज्ञान 12
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