ज्ञानानंद भाजनाकर | Gyananand Bhajanakar
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
689 KB
कुल पष्ठ :
32
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)| { १५ |
লিল के धन थे अपारः फन्दे इसके पड़ यार |
सोया नर माल सार, हुई इज्जत स्वार ।
खाली दौलत का सारा खजाना हुवा । रन्दीवानी मर । १ ॥
एक पाई ' का यारं, नहीं मिलता उधार ।
कटे ক্সাহম वदकार, मुंह में धुके संसार ।
फलत वश्या की प्रीति का पाना हुमा { रन्दीवाजी मे° 1! २॥
गरवे रन्दी के यार्, गयं तेरा रहं जाय ।
कन्या जन्मे जो आय जग से मधून कराय ॥
वेशुमार जमाई वनाना हुवा । रन्डी वानी ॥ २ ॥
यदि गर्मी होजाय, फिरो टहनी दिलाय । `
कीं जावो चलाय, देख हुम को धिनाय ॥
^ कहं उठ जावो खव, याराना हुवा । रन्डीबाजी० ॥'४ ॥
जव लौं पैसा रै पास रन्डी रहती है दास |
नहीं पंसा रहा पास, देवे बाहर निकास ॥
धर से मए निकल, क्या दीवाना हुवा 1 रन्डीषाजी° ॥ ५॥
जाओ फिर कर जो यार, मारे जूते हजार ।
दौड़ लावे पुकार, मुश्क बांधे सरकार ॥
पुलिस आई इजहार लिखाना हुआ । रनन््होवाजी ॥ ६ ॥
फौरन थाने में आन, किया तेरा चालान ।
' हुक्म ढिप्टी ने तान, दिया ऐसां लो जान ॥
छह की सजा दस जुरमाना हुवा | ७॥
कतो जैनी ललकार, कर इससे न प्यार । ध
जावो नस्कों मंभार, नहीं हरगिज जिनहार ॥ `
प्रीति इससे न कर, क्यों दिवाना हुवा । रनडीवाजी० ॥
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