ज्ञानानंद भाजनाकर | Gyananand Bhajanakar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| { १५ | লিল के धन थे अपारः फन्दे इसके पड़ यार | सोया नर माल सार, हुई इज्जत स्वार । खाली दौलत का सारा खजाना हुवा । रन्दीवानी मर । १ ॥ एक पाई ' का यारं, नहीं मिलता उधार । कटे ক্সাহম वदकार, मुंह में धुके संसार । फलत वश्या की प्रीति का पाना हुमा { रन्दीवाजी मे° 1! २॥ गरवे रन्दी के यार्‌, गयं तेरा रहं जाय । कन्या जन्मे जो आय जग से मधून कराय ॥ वेशुमार जमाई वनाना हुवा । रन्डी वानी ॥ २ ॥ यदि गर्मी होजाय, फिरो टहनी दिलाय । ` कीं जावो चलाय, देख हुम को धिनाय ॥ ^ कहं उठ जावो खव, याराना हुवा । रन्डीबाजी० ॥'४ ॥ जव लौं पैसा रै पास रन्डी रहती है दास | नहीं पंसा रहा पास, देवे बाहर निकास ॥ धर से मए निकल, क्या दीवाना हुवा 1 रन्डीषाजी° ॥ ५॥ जाओ फिर कर जो यार, मारे जूते हजार । दौड़ लावे पुकार, मुश्क बांधे सरकार ॥ पुलिस आई इजहार लिखाना हुआ । रनन्‍्होवाजी ॥ ६ ॥ फौरन थाने में आन, किया तेरा चालान । ' हुक्म ढिप्टी ने तान, दिया ऐसां लो जान ॥ छह की सजा दस जुरमाना हुवा | ७॥ कतो जैनी ललकार, कर इससे न प्यार । ध जावो नस्कों मंभार, नहीं हरगिज जिनहार ॥ ` प्रीति इससे न कर, क्यों दिवाना हुवा । रनडीवाजी० ॥




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