कराशी कोप | Karashi Kop

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Karashi Kop by हरिराम - Hariram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३८ ) 9 आख पर चोट लगजाना-चरेड़ कबूतर की वीट को पानी में रगइ कर आंख पर लगाना चाहिये। ८ काटा (खार) मुहाल'-पहिचान-यह पश्ञ के मुहँ के भीतर करलों में कठार कांटे से होते हैं इनके कप्ट से पश्ञ॒ चारा नहीं भ खाभकता दुवंङ होजाताहै- चिक्ितूसा- (१) नमक पशु के युं में मलन से मुह्ाला नरम पड़के कुछ दिन में दव जाता है (२) यादि उक्त रीति से रोग दर नहों तो रांपी से कटवा देना चांहिय । ९ मुह पका-पहिचान--बहुधा पश्ञ के मुंह में छाले पड़ जातेहे इसमें पशु उदास रहता है जुंगांठी नहीं करता चारा नहीं खाता मुख मे राल ८पक्रती है ओठ चाठता है-चिकित्‌सा-२ तोखा फिटकरी को ९ सेर पानो में उवालना चाहिये जव फिटकरी घुल जाय तव उतार कर कुछ उष्ण दशा में पश्य के मुंह पर वाछारा देना चाहिये । ২০ ख़रपंका-पहिचान-- यह राग सुहपका के साथ अवरस्य होजाया करता है ख़र पक जाते है पश्ञ छेगड़ाने लगता है और उदास रहता ह चिकितृता-(१) चमार छोग चमड़े को ववल (कीकर) के छालादि के पानी में चमड़े को रंगते हैं जो नांद में भरा हुआ रहता है इस पानी को पश्ष के ख़रों पर छिडकना चाहिय (२) बदल की छाल को पानी में पकाकर इस पानी को खुरो पर छिड़कना चाहिये। भ्धनाट-यह राग एक पञ्चस दूसर पर छग जाता हैं इस ख्य एस रामा पञ्च का नतात पृथक रक्खा जाय एंसे पद्म को छखसा जगह मे रखकर वहां पर गधक जलाना चाहिये पद को हरा धास ताजा पाना दना चाय ३१ वसका“पहिचान-हइस राग म्ें पश्ु प्रति समय শান এ ক ।




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