नयचक्रादिसंग्रह | Nayachakradisangrah

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Nayachakradisangrah by आचार्य विद्यानन्द - Aacharya Vidyyanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्‌ तेति पायपसाे उवरद्धं समणतचेण ॥ ~ पहली गाधाका अथे यह है कि * दव्वसहावपयास ! ना | . ध्रका एक ग्रन्थ था जो दोहा छंदोंमें बनाया हुआ धा { उसीकौ ' ` माद घवलने गाथाओमे रचा | = . द्री गाया बहुत कुछ अस्पष्ट है; फिर मी उसका अभि- _ . आये लगभग यह है कि श्रीदेवसेन योगीके चरणोंके प्रसादसे यह - प्रंथ -भनायों गया | । ঘর गाथा बम्प्रईकी प्रतिमें नहीं है, मोरेनाकी प्रतिमें है | , अम्बईकी प्रतिमें-इसके बदले * दुसमीरणेण पोय पेरियसंत › आदि गाथा है जो ऊपर एक जगह उद्धत की जा चुकी है और जि. ` समें यह बतलाया गया ই कि देवसेनपुनिने पुराने नष्ट हुए नय- अक्रकों फिरसे बनाण | | मोरेनावारी प्रतिकी गाथा - यदि. दीक है तो उसे केवर ' यही मालूम होता है कि-माइलछ धवला देवसेनसूरिसे. कुछ नि~. कटके। गुरुसंबंध होगा । बम्बईवाली प्रतिक गाधा माइछ घबर.. से कोई संबंध नहीं रखती है-वह नयचक्र और देवसेनसूरिकी प्रशं सावाचक्र अन्‍य तीन चार गःथाओंके समान एक जुी ही प्र- शस्ति गाथा है। नीचे लिखी गाथाम. कदा है किं दोहा छम सचे इए द्रन्य स्वभाव प्रकाशको सुनकर सुहंकर या युभकर नामक्रे कोई सन्च- - जो संभवत माइ घवलके मित्र होंगे हंसकर बोले कि दोहा- . ,भमिं यह अच्छा नहीं ढगता; इसे गाथाबद्ध कर दो;---




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