शबेतार | Shabetar

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Shabetar by प्रेमचंद - Premchand

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प्रेमचंद का जन्म ३१ जुलाई १८८० को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। सात वर्ष की अवस्था में उनकी माता तथा चौदह वर्ष की अवस्था में उनके पिता का देहान्त हो गया जिसके कारण उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा। उनकी बचपन से ही पढ़ने में बहुत रुचि थी। १३ साल की उम्र में ही उन्‍होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार रतननाथ 'शरसार', मिर्ज़ा हादी रुस्वा और मौलाना शरर के उपन्‍यासों से परिचय प्राप्‍त कर लिया। उनक

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नौजवान अंधी औरत पहला नाबीना नौजवान अंधी औरत पहला नाबीना नौजवान अंधी औरत सबसे बुह्ी अंधी औरत _ दूसरा नाबीना तीसरा नाबीना पहला नाबीना पांचवां नाबीना पहला नाबीना दूसरा नाबीना पहला नाबीना तीसरा नाबीना सबसे बुह्ी अंधी औरत तीसरा नाबीना दूसरा नाबीना सबसे बुद्दी अंधी औरत दूसरा नाबीना शबेतार 15 मैंने भी उनका मतलब न समझा। उन्होंने मुझसे यही बताया कि मैं उस बड़े रौशनी के मीनार की तरफ जा रहा हूं। क्या यहां कोई रौशनी का मीनार भी है? हां जजीरे के शुमाल में है। मेरा ख़याल है कि हम उससे बहुत दूर नहीं हैं। वह मुझसे कहते थे कि मीनार की रौशनी यहां की पत्तियों पर पड़ती हुई नज़र आती है। मुझे आज के से अफसुर्दा-ख़ातिर उदास वह कभी न मालूम हुए थे और मेरा ख़याल है कि वह कई दिन से रायी करते थे । मालूम नहीं क्यों मैं खुद भी रोया । मैंने उन्हें जाते हुए नहीं सुना । इससे ज़्यादा मैं उनसे और कुछ न पूछ सकी। मैं सुन रही थी कि वह बहुत संजीदगी से मुस्करा रहे थे। मैंने यह भी सुना कि वह आंखें बन्द कर रहे थे और सुकून चाहते थे। उन्होंने यह सब बातें हमसे नहीं कहीं । तुम उनकी बातें कब सुनते थे जब वह बोलते हैं तो तुम सबके सब कानाफुसकी करने लगती हो। चलते वक्त उन्होंने सिर्फ वस्सलाम कहा। रात ज्यादा आ गयी। चलते वक्त उन्होंने दो-तीन बार वस्सलाम कहा गोया सोने जा रहे हों। जब वह सलाम कर रहे थे तो मुझे ऐसा मालूम होता था कि वह मेरी तरफ ताक रहे हैं। जब कोई किसी चीज़ की तरफ गौर से देखता है तो उसकी आवाज़ तबदील हो जाती है। उन लोगों पर रहम करो जिनके आंखें नहीं हैं। यह कौन वाहियात बातें कर रहा है शायद यह वो है जो सुन नहीं सकता । चुप रहो यह रोने का वक्‍त नहीं है। महात्मा जी रोटी और पानी लेने कहां चले गये? वह समुंदर की तरफ गये। इस सिन-ओ-साल उम्र पर कोई इस तरह समुंदर की तरफ नहीं जाता । क्या हम समुंदर के करीब हैं? हां एक लमहा ख़ामोश हो जाओ तुम्हें उसकी आवाज सुनायी देगी । करीब से समुंदर की धीमी-धीमी सदा मुझे तो सिर्फ तीनों औरतों के दुआ करने की आवाज़ आ रही है।




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