लोकतांत्रिक भारत की शिक्षा में महात्मा गाँधी एवं पण्डित दीन दयाल उपाध्याय जी शैक्षिक योगदान का तुलनात्मक अध्ययन | Lokatantrik Bharat Ki Shiksha Men Mahatma Gandhi Avam Pandit Deen Dayal Upadhyay Ji Shaikshik Yogadan Ka Tulanatmak Adhyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गये । तदुपरान्त सम्पूर्ण शिक्षा पर विचार करने के लिये 1 964 में डा0 दौलत सिंह कोठारी की अध्यक्षता में भारतीय शिक्षा आयोग का गठन हुआ । इस आयोग ने शिक्षा के सभी क्षेत्रों पर विचार किया और विशाल ग्रन्थ के रूप में अपना प्रतिवेदन ` प्रस्तुत किया । इसके बाद हमारे युवा प्रधानमंत्री स्वर्गाय श्री राजीव गांधी ने ~ सांस्कृतिक विरासत की पुनः प्राप्ति हेतु राष्ट्रीय आवश्यकताओ को पूरा करने के लिये शिक्षा प्रणाली मे मौलिक परिवर्तन की बात सोची ओर 1986 में नई शिक्षा नीति निर्धारित करने की घोषणा की | इस नयी शिक्षा नीति के समर्थन में अति उत्साही नवयुवक श्री विमल तिवारी (तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राष्ट्रीय छात्र संगठन काग्रेस (ई)) ने लक्ष्मी व्यायामशाला झाँसी में कार्यकर्ता सम्मेलन का उद्घाटन करते हुये यहाँ तक कह डाला कि “वास्तव मेँ अभी तक हम लोग स्वतन्त्र नहीं थे लेकिन नयी शिक्षा नीति 1986 के लागू हो जाने से हमें स्वतन्त्रता का अनुभव हो रहा है” | अत: शिक्षा प्रणली और पाठयचर्या में सुधार के सतत्‌ प्रयत्न होते आये 1 গা ০০৪৭৪ ना ५ ५५ | शिक्षा को अनेकोंबार (पुर्निसमी की संकरी गलियों से गुजरना पड़ा पर उसके समीक्षक और मार्गदर्शक प्रायः एक ही थे जो मैकाले की रीढ़हीन बुद्धिजीव निर्मात्री शिक्षा व्यवस्था के दंश के शिकारथे। ` कुल मिलाकर वर्तमान शिक्षा का जो स्वरूप हमारे सामने उभरता है. वह नितान्त ओपचारिक हे | जिसमें शिक्षा शुद्ध कृत्रिम विधियों से आगे बढती है और पुस्तकीय ज्ञान रटाकर शिक्षार्थी को पण्डित बना देना जिसका लक्ष्य है | जबकि शिक्षा का उद्देश्य केवल कतिपय विषयों की जानकारी देना मात्र नहीं है । शिक्षा दवारा बालक का शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, नैतिक तथा आध्यात्मिक विकास इस प्रकार होना चाहिये कि वह अपने पैरों प्रति अपने उत्तरदायित्व का पूरी तरह से का सर्वांगीण विकास ही उपरोक्त समस्त बातों का गम्भीरता पूर्वक चिन्तन के उपरान्त शोधार्थिनी पर खड़ा होकर समाज निर्वाह कर सकें | इस प्र ভা: शिक्षा का उद्देश्य है। ক र्मा विचार उत्पन्न हुआ




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