भूमिजा | Bhumija

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Bhumija by रघुवीर शरण - Raghuveer Sharan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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কী পা সপ স্তর আটা পট পন নাত ৯৫ আজ भूमिजा ८ ज नक সি দিবা চল পাত সরে অনন্ত य वोधे निश सी वोज रही ह पुजा परणमेवर्‌ क) हाय ! विराश्वित लोॉज रही है- नारी अपने नर को।! दुःखों का उजियाला लेकर- पथ रचती जाती है। सेवा है, नर को सुख देकर- खुद ठोकर खाती दै॥ आँखों में है अध्य, साथ मै. हवा तिराध्ित चलती ! दीपित है इस तरह मोम की- बत्ती जैसे जलती | হন্রাজী में है पवन, पर्गों को- प्रशा ने पकड़ा है। घौर निराशा में प्राणों को- पृथ्वी ने জন্ষভ্য ই? सत्य हुआ साकार या कि झ्िव- ने यहं चित्र. बचाया | सुन्दरता का फूल ননী के- रोदन में मुसकाया | ও 1 ॥ छ ॥ ~




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