अथ नरसिंहपूराण भाषा की भूमिका | Ath Narsingh Bhasha Ki Bhoomika

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Ath Narsingh Bhasha Ki Bhoomika  by अवध अखबार - Awadh Akhbaar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सातलसे पृथ्वी ले आनेके लिय॑ ' ब কবি श নি ध पु ५ 4 ८.4 ५ न দৃশ্য बरामद पाक (~ १ {द 1 ~~? 1 ~! = তি करकराय 1वेष्ण॒रूपी बह्माजी के प्रलयं क्‌ 4110 च शे प (4 ५. ১ রঃ পিস 22817 পু षो ४ (< म ঠা + र. ष ५ ५ ७५ ९ | £ ১১০ | ५९ এ টি श म যাকাত 5475 হাল জালা ইহা হাত সহম্বলজ টি ब्याह तीसरा अध्याय ॥ दो० पुनि तृतीय अध्याय महेँ, सष्टिहे केर बखान। कीन सूत मुनिसों बहुत, विधिसों सहित विधान ॥ १॥ सतजी बोले कि, है महाभाग |! उस महांप्रलय के जलम शेषनागके ऊपर सोते हुये श्रीनारायस मगवान्‌ को नाभीसे कमल जामा उससे वेदवेदाड़ा के पारणगा्ी बह्माजी उत्पन्नहुये १ उनसे उन्होंने कहा कि, हे महा मतिवाले | साछ्ठिकरों ऐसा कहकर नारायण प्रम अन्त- डॉन हागये २ अच्छाहम राछ्ठे करगे यह कह ब्रह्माजी उन्हंविष्ण मगवाव की चिन्तना करनेलगे परन्त उन्हें जगत्‌ के उत्पन्नकरने का कुछ बीज न मिला कि उससे জাতি करते ३ तब इस बातपर ब्रह्माजी के बड़ा क्रोध न्नहुआ उस क्रोधसे उत्पन्नहोकर उनकी गोठमे आ- कर एक बालक बेठगया ४ व रोदन करनेलगा बह्माजी नें राका भी पर उसने नहीं माना कहा कि मेशनाम क्या है तो बरह्माजीन कहा तम्हार श्दरन महे ५ पर तमद करो ब्रह्माजी के ऐसा कहनेपर उन्होने शष्चि करना चाहा पर कर न सके उसीजल में स्थानकर तपकरतने




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