छायावादी काव्य की भाषिक संवेदना | Chhatyawadi Kavya Ki Bhasik Samvedana
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
88 MB
कुल पष्ठ :
317
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)1:
का पताशा কী আাঘাদেল লান্নলাঃ
वनि রাত पंशाक अल:
(क) का सता का और परम्परागत काज्यशास्थ्य दष्टिकोण्ण
ফী গর হয ছা বাটিতে জি তত রেড পি ফর অতীত হত টি गि চাই রক ই ঘটা রোড অর এডি
का व्मा जात के उन््दम में परम्परागत काव्यशास्त्रं ॐ
टू ष्टिकौण व्याधे? इस पर् कार उना अेभाणीय ह। पारक्य
साहित्य शास्त्र में काव्य ३ सृष्टि बोर লিশিলি ভীলাঁ रूपी में स्वीकाए
किया गया है। कौषी के रौमारिक कवि शे टूस मे आदश काव्य उसी
कौ माना है, जौ कवि के मन मे उसी ज्कार उगै,जैसे वुद्ा' में कोफँ
उगती है।
काव्या स्थ प र के दौ संघटक तत्व रै शब्द बर्
वथ । उन्होने शब्दाय के साहित्य कौ काव्यास्वाद का जनक कहा ।
उका यह सत्र सरतमुस्ति के इस सूत्र पर आधारित है-
` विमाकतूमाव व्याभनारि संयमा द्रव निष्पदः ˆ 1
का-वरास्तर को प्राचीनतम सिद्धान्त है कंकार- सिद्ध
यथपि इसके प मरतमुनि का ˆ ख~ पदान्त पणणं प्रबहन प्
जिसका आज न~ ग्रन्थ नाट्यशास्त्र हे ! परकै काच्थर
ति न्मनदत রা
स्त्र , अध्यय ६9 ~ ७९
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