छंद : सारावली | Chhand Sarawali

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Chhand Sarawali by जगन्नाथ प्रसाद - Jagannath Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न्ड-चाःड सः्ड दाद रात बाउ साड बाज दान पड उस दल | छुः सारावली | धन ः पाए त्ै दो ि क्र ९ जिसके उच्चारण में अधिक का छगे वह बसागुरु हैं भेसे आ ईं ऊ का की कू के के को को के के. १० संयुक्ताक्षर के पूव्व का लघुबण गुरु माना जाता हे नेसे सत्य घर्म्म चित्र यहां स घ ओर चि गुरु है । ११ संयुक्ता्तर के पृव्य के लघु पर जहां भार नहीं पढ़ता वहां वह लघु का लघुही रहता ह जस- कन्हेया जुन्हेया तुम्हाग यहा क जु और तु रूघुद्दी है श्र कभीर चरण के अंत में लघुवण इच्छानुसार शुरु माना जाता है क्योंकि इसका उच्चारण भी गुरुवत होता दे जसे- ढीछा तुम्हारी अति दी विचित्र-यह इदट्रवजा बृत्त को एक रण है । नियमाघुवार इसके अत में एक गुरु होता है । यहा तर खघुका शुरु मान छिया और उच्चारण भी रुरुवत्‌ू किया 4 १३ दौरघ हू लघु कर पढ़ें लघु ही दीरघ मान । मुख सो प्रगटे सुख सादहित काबिद करत बखान ॥ श अभिषाय यह है कि वर्णें। का ग़रुत्व वा लघत्व केवल उच्चारण पर निभेर हे जेसे- गुरुवण का टघुवत्‌ उच्चारण- करत जा बन सुर नर मुनि मे वने यहां जा का उच्चारण जु के सट््टश हूं अतएव जा लघ माना गया । ् छघुबण का गुरुवत्‌ उच्चारण- छीछा तुम्हारी अति दी वि/चिन्न £ यहां त्र गुरु मामा गया दंखा £ नसलयम १९। ४ जद ड द्ड- द्वार द् जार दादा. राड-दाज फाफं-फाज पा द्नारूा फ्ाकिनपनर मिं। धवन बजाज नस द-उसाड-ाडउाड दा रस डा उस दाल्टी रा दा दा ऋाप्ट बाद चाट ऋ डतद दा ली म ड र दाद पी दर रख




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