ब्रह्मचार्य भाग 1 | Brahamcharya Patr 1

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Brahamcharya Patr 1 by महात्मा गाँधी - Mahatma Gandhi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४४५६ ब्रह्मवय॑ का अय एक सज्जन लिखते हैं “ग्पके विचारों को पढ़कर मैं बहुत समय से यह मानता आया हुँकि संतति-निरोध के लिए ब्रह्मचर्य ही एक-मात्र सर्वेश्रेष्ठ उपाय है। संभोग केवल संतानेच्छा से प्रेरित होकर होना चाहिए; बिना संतानेच्छा का भोग पाप है, इन बातों को सोचते हँ तो कई प्रदन उपस्थित होते हैँ । संभोग संतानः ` के लिए किया जाय यह ठीक है; पर एक-दो बार के भोग से संतान न हो, वोट... द ऐसे समय को मर्यादापूर्वक किस सीमा के अंदर रहना चाहिए ? एक-दो बार के संभोग से संताव चाहे न हो, पर आशा कहां पिण्ड छोड़ती है ? इस प्रकार वीये का बहुत-कुछ अ्रपव्यय श्रनचाहे भी हो सकता है। ऐसे व्यक्ति को क्या यह कहा जाय कि ईश्वर की इच्छा विरुद्ध होने के कारण उसे _ भोग का त्याग कर देना चाहिए । एसे भोग के लिए तो बहुत भ्राध्यात्मिकता की आवश्यकता है। प्राय: ऐसा भी देखने में आया है कि संतान सारी उम्र नः . होकर उत्तरावस्था में हुई है, इसलिए आशा का त्याग करता कठिन है | यह _ . कठिनाई तब और भी बढ़ जाती है, जब दोनों स्वी-पुरुष रोग से मुक्त हों ।” यह केठियाई अवश्य है; लेकिन ऐसी बातें मुश्किल तो हुआ ही करती' . हैं। मनुष्य अ्रपनी उन्नतिं बगैर कठिनाई के कैसे कर सकता है ? हिमालय पंर _ चढ़ने के लिए जैसे-जैसे मनुष्य आगे बढ़ता है, कठिनाई बढ़ती ही जाती है यहांतक कि हिमालय के सबसे ऊंचे शिखर पर आज तक कोई पहुंच नहीं... सका है। इस प्रयत्न में कई मनुष्यों ने मृत्यु की भेंट की है। हर साल चढ़ाई... .. करने वाले नए-नए पुरुषार्थी तैयार होते हैं और निष्फल भी होते हैं, फिर भी ._ इस प्रयास को वे छोड़ते नहीं । विषयेंद्रिय का दमन-हिमालय पहाड़ पर. ডঃ




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