श्री मथुरेश प्रेम संहिता [भाग 1] | Shri Mathuresh Prem Sanhita [Bhag 1]

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Shri Mathuresh Prem Sanhita [Bhag 1] by मुन्शी मथुराप्रसाद - Munshi Mathuraprasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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# अपयुरेशमेमर्सहिता प्रदयभाग #£ - ६४) জলাগুনা है। रथसे उतरकर इसको दण्डवरत प्रणाम कीजिये « आर इस रागका सतलव ध्यानदेकर समझ लीजिये ४ सेछ-प्यारी तुस ठीक कहती हो। मेरा दिलभी यही गता है । दोनो रथे उतरकर महात्साकी तेर्‌ बटकर. উন সাল करते हैं महात्मा आज्ीवोद दायके इकारे से 'कर गाताहुबा आगे बढता है। सेठ सेठानी कुछ दूर लहात्मा- ६ की गाईहुई चीजको ग्रोरते सुनते हुये उनके साथ लेजाते हैं महात्माजी उसकी तरफ देखकर फुरमाते हैं । महात्मा +उम्तछोग क्यों हमारे पीछे चले आरहे हो अपने रस्ते क्यों नहीं जाते ॥ से्ट-(छषजोडकर ) महाराज संसारी जीव आपके दहीनों से अपने पाठक सिंठाते और आनन्द पाते हैं इसालिये हाय चलेआते हैं। कृपाकरके जो राग आप गाते हैं उसका ऊर्ष लमझाकर हमारा भी कल्यान करवीजिये | यह बिनती हम्तरी सान छीजिये ॥ 0 पहात्मा-भाई तुम सुसाफ्रि दिखाई देते हो अपना रस्ता छो इंन बातों भें क्या हातप्र आयेगा तुम्हारा समय क्या जायेगा चछे जाओ हमारे ध्यानमें विध्च .न डालो भृहसथी आदमी: का साधुवों से.अधिक प्रसंग अच्छा नहीं | जाओ हमारी आज्ञा पालो ॥ सेछु-महाराज ! 'आपकी आज्ञा हमारे सर आँख पर है परन्तु चलते फिरते किसीका कल्याद करदेन क्या. इर है ।.दासका निवेदन एतावन्साज है कि जो छुछ आपने र এ कार এ] | 1 এ




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