भगवद्गीता यथारूप [संस्करण -2] | Bhagvadgeeta Yathaswarup [Sanskaran-२]
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24 MB
कुल पष्ठ :
786
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (1 सितम्बर 1896 – 14 नवम्बर 1977) जिन्हें स्वामी श्रील भक्तिवेदांत प्रभुपाद के नाम से भी जाना जाता है,सनातन हिन्दू धर्म के एक प्रसिद्ध गौडीय वैष्णव गुरु तथा धर्मप्रचारक थे। आज संपूर्ण विश्व की हिन्दु धर्म भगवान श्री कृष्ण और श्रीमदभगवतगीता में जो आस्था है आज समस्त विश्व के करोडों लोग जो सनातन धर्म के अनुयायी बने हैं उसका श्रेय जाता है अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद को, इन्होंने वेदान्त कृष्ण-भक्ति और इससे संबंधित क्षेत्रों पर शुद्ध कृष्ण भक्ति के प्रवर्तक श्री ब्रह्म-मध्व-गौड़ीय संप्रदाय के पूर्वाचार्यों की टीकाओं के प्रचार प्रसार और कृष्णभावन
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आमुख
सर्वप्रथम मैंने भगवद्गीता यधारूप इसी रूप मे लिखी धी जिस रूप मे अन
यह प्रस्तुत की जा रही है। दुरभाग्यवश जब पहली बार इसका प्रकाशन हुआ
तो मूल पाण्डुलिपि को छोटा कर? दिया गया जिससे अधिकाश श्लोका की
व्याख्याएँ छूट गईं थी। मेरी अन्य सारी कृतियां गे पहले मूल श्लोक दिये
गये है, फिर उनका अग्रेजी में लिप्यन्तरण, तब सम्कृत शब्दों का अग्रेजी में
अर्थ, फिर अनुवाद और अन्त में तात्पर्य रहता है। इससे कृति प्रामाणिक तथा
विद्नत्तापूर्ण बन जाती है और उसका अर्थ स्वत स्पष्ट हो जाता है। अत जब
मुझे अपनी मूल पाण्डुलिपि को छोटा करना पड़ा तो मुझे कोई प्रसन्नता नहीं
हुई। किन्तु जब भगवदगीता यथारूप की माँग बढी तो तमाम विद्वाना तथा
भक्तो ने मुझसे अनुरोध किया कि मै इस कृति को इसके मूल रूप मे प्रस्तुत
करूँ। अतएव ज्ञान की इस महाव कृति को मेरी मूल पाण्डुलिपि का रूप
प्रदान करमे के लिए वर्तमान प्रयास किया गया है जो पूर्ण परम्परा व्याख्या
से युक्त है, जिससे कि कृष्णभावनामृत आन्दोला की अधिक प्रगतिशील एव
पुष्ट स्थापना की जा सके।
हमारा कृष्णभावनामृत आन्दोलन मौलिक, ऐतिहासिक दृष्टि से प्रामाणिक, सहज
तथा दिव्य है क्योकि यह भगवद्गीता यधारूप पर आधारित है। यह सम्पूर्ण
जगत में, विशेषतया नई पीढ़ी के बीच, अति लोकपिय हो रहा है। यह प्राचीम
पीढी के नीच भी अधिकाधिक सुरुचि प्रदान वरने वाला है। बूढ़े लोग इसमे
इतनी रुचि दिखा रहे है कि हमारे शिष्यों के पिता तथा पितामह हमारे सघ
के आजीवन सदस्य बनकर हमारा उत्साहवर्धन कर रहे है। लॉस एजिलिस में
अनेक मातार्प तथा पिता मेरे पास यह कृतज्ञता व्यक्त कले आते थे कि मै
सोरे विश्व में कृष्णभावनामृत आन्दोलन की अगुअई कर रहा हूँ। उनमें से कुछ
लोगों ने कहा कि अमरीकी लोग बड़े ही भाग्यशाली है कि मैंने अफ्रीका
म कृष्णभावनामृत आन्दोलन का शुभारम्भ किया है। किन्तु इस आन्दोलन के
आदि प्रवर्तक स्वय भगवान् कृष्ण है, करोकि यट आन्दोलन बहुत काल पूर्व
प्रवर्तित हो चुका था और परम्परा द्वारा यह गानव समाज में चलता चला
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