कुशल लाभ | Kushal Labh

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Kushal Labh by ब्रजमोहन जावलिया -Brajmohan Javlia

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवनवृत्त भौर काव्य सृष्टि / 17 है। यह पद मात्त सम्मानजनत्र उपाधि थी, जो राज्य द्वारा मायता या प्रतीक हो सकती है। बे एक योग्य गुरु के योग्य शिष्य, उत्हृष्ट कोटि के विद्वान और स्वय भी एक सुयोग्य गुए थे । 'माधवानल कामकदला चौपई', “'ढोलामारवणी री चौपई” भौर भपिगल शिरोमणि! म स्पप्टत वह स्वय को जैसलमेर के राजबुमार और वाला-तर में रावल उपाधि घारी हरराज के गुरु वे रूप म॑ व्यक्त करत हैं। इसस भी यह प्रमाणित होता है कि वे भी राज्य द्वारा सम्मानप्राप्त यतिये। उक्तप्रथाकी रचना इहोने राज्याश्रय मे ही रह कर की थी । एसा प्रतीत होता है कि आत्मकल्याण और धम प्रचार की भावना से प्रेरित होकर, उहोन स्वगुरु के आदशानुसा र, अथया जैन तीर्थों की पवित्रता से आावपित होकर 'जिनपालित जिनरक्षित रास, पापए्वनाच दशभवस्तवन,' 'मगडदत्त रास, 'भीमसेन हसराज चोपई, 'स्थूलिभद्र छत्तीसी ' 'नवरार छद,' आदि की रचना धम प्रचार हेतु गुजरात आदि म॑ प्रवास वाल म॑ वी थी। इनका उद्देश्य सदाचार सप्रेरित जीवन यापत पर बल देना रहा है। 'महामाई दुर्गासातसी/ भर “व्गदम्बा छद वधे रचना वा उद्देश्य, देश म बढत मुस्लिम प्रभाव के विरुद्ध शवितपूजक राजपूत जाति वे आह्वान के भतिरिवत और कुछ नही दिखाई देता, जिसके लिए साधु-सत सदा स प्रयत्तशील रह हैं। धामिक ग्रथो के पठन पाठवय की परम्परा के साथ-साथ उहोने छदशास्त्र, कामशास्त्र, सगीतशास्व्, भौर लोकसाहित्य का भी अध्ययन क्या था। उनके द्वारा प्रणीत साहित्य म इन विपया के गहन अध्ययन वे पुष्कल प्रमाण उपलब्ध है । जैन साधुओ की चर्या के अजुसार बुशललाभ ने राजस्थान, मालवा, गुबरात, आदि के अनेक स्थाना की थाभाएँ की होगी, पर ज॑क्तलमेर से उनका लगाव बहुत अधिक रहा । वुशललाभ के साहित्य बे! अध्ययन स उनके बहुमुखी अनुभव मौर ज्ञान की जानवारी मिलती है। शत्रुजय यात्रा स्तवन” से उनके भौगोलिक भान कापरिचय मिलता है तो साथ ही इस बात की जानकारी भी मिलती है कि उनको सामती शिष्टाचार, गौर प्रादेशिक इतिहास पी भी जानकारी थी । 'माधवानल कामवदला चौपई, 'ढाला मार चौपइ ” अगडदत्त रास, भीमेन हसराज चौपई,” পাবি रचनाएँ इस प्रकार की जानकारी स भरी पड़ी हैं। छह शवुन शास्त्र, तथा विभिन पर्वोत्सवों म भी विशेष रचि थी। सगीत मे उनकी दक्षता का प्रमाण उनके द्वारा विरचित स्तोभ, छद और गीत शीपक लघु रचनाओ तथा “भीमसेन हसराज चौपई! मे प्रयुक्त शास्त्रीय रागो मे निवद्ध ढालो से मिलता है-- कुशललाभ ने जिन कथाओ और विपया को आधार बनाकर अपने साहित्य की रचना की है, उही कथाआ और विपया को आधार बनाकर सुदीघकाल से घर्मोपदेशक और कवि अपने साहित्य की सरचता करते रहे ये। बुशललाभ मे इन




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