तुलसीकृत कवितावली का अनुशीलन | Tulsi Krit Kavitavli Ka Anushilan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
150
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about भानुशीलन जैन -Bhanusheelan Jain
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तुलसी का जीवन वत्त १३
जाति के, सुजाति के बुजाति वे यठगि बस
साए हुक सके वित्ति वात दुना মা
बारे ते ललात विललात द्वार द्वार दीन
जानत हौं चारि प्व चारि ही चतव का ।
(क्वित्ावली हत्तरक्राण्ट पल ७२, ७३)
परिवार और जाति
तुलसीदास ने अपनी जाति तथा ल व परिवार नं विपयम भी अपनी
कृतियों मं क्म लिखा है परातु जो कुछ निषा है उसमे यह नात होता है करि भारत
भूमिम जम सने नौर उच्चं परिवार म उत्पन हाने को दहति सीमाग्यही माता
है! उच्च परिवार से तात्पय यही निक्लताहै कि य मयन कुल ब्राह्मण) म पदा
हए थे जिसको उदाने इस प्रकार व्यकत किया है--
जायो कुत मगन वघावनो वजायो सुनि
भयो परितापु पापु जननी जनक को
मि भारत भूमि भले दुल जमु सभाज गरीर भलौ हिकं!
(कवितावगरी उत्तरकाण्ड, पद ५३, ३३)
विनयपत्रिका' से एक पक्ति आती है जिसम 'सुकुल' शब्ठ आया है । इसको
जेकर बुछ विद्वाना ने यह अनुमान लगाया ह कि तुलसी गुक्ल' जाति थे परतु वहा
पर यह दाब्ट किसी जाति विशेष का वाघक न होकर उच्च कुल का ही वोधक
है, यथा--
दियो सुकुल जनम सरीर सुदर हेतु जो फत चारि को
तिश्चित ही 'मुकुल तथा ऊपर की पक्ति म॑भत्र कुल जमु एक ही है।
दान। पदितया स यह् भी पना चलना है ङ्गि उनका नरीर सुटर और रूपवान था ।
षन प्रमाणा के अतिरि सना की तरह दहति अने को जाति-पाति हीन
भी बतलाया है । जब ये अपने को इस प्रकार स कहते हांगे तो लोग नीच कहकर
इनका चिढाते भी होंगे । कोई रह घूत कहता होगा और काई अवधूत (যন),
कोई उच्च कुल का कहता होगा और बोई जुताहा कहने मे कसी भी प्रकार का
संकाच न करता होगा । तुलसी ने इन उपाउम्भा वी चिन्ता नहीं वी है । उहनि
तो লাঘব साना और दवातय मे सोना या भगवान का भजन करना ही अपने
जीवते का पगम लव्य ঘবাসা जेसा कि इस पट मे मिलता है--
घूत कही अवधघूत कहौ रज पूतु वहों जुतहां कहो काऊ
काहू वी बटी न व्याहव वाहू की जाति विगार न सोऊ
तुलसी सरनामु है राम का, जाको रुचसा कहे कछु नाम
साँधि के खबो, मस्तीव का साईवा लब॒ वा एफ न दव को হীজ।
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