सृष्टिवाद और ईश्वर | Sarsthivad Aur Iswar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
पूर्णचन्द दक न्यायतीर्थ - Purnachand Dak Nyaytiirth,
रत्ना चन्द्र जी महाराज - Ratna Chandra Ji Maharaj
रत्ना चन्द्र जी महाराज - Ratna Chandra Ji Maharaj
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
543
श्रेणी :
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पूर्णचन्द दक न्यायतीर्थ - Purnachand Dak Nyaytiirth
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रत्ना चन्द्र जी महाराज - Ratna Chandra Ji Maharaj
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ननन ~
१० खष्टिबाद भर इश्वर
से द्ता है ।सों अरष्ट शक्ति मिराकार है, उसी फो फिर
साफार मानफर फइ प्र उसरू भाफ़ार झी फक््पसा फरते
ह, वया घड़ते हैं, भोर इस साकारता में जो भिन्न मिन्त
मतभेद पड़ते ई य भी आफार फे ओचित्य परत्य माश्न से
तर्फ फे द्वारा पङ हुं एरपनापे शोवी ६ । ये सय कल्पना
स्यापार में उ्तमोच्म वथा मानयजीयन फो उर््वगामी करते,
चेसी सुपटित फक्पना पर फइ पक व्यक्ति पिघार फरते हैं, चर
अपने इश्वर फा स्थरूप पड़ते हैं|
इस 'सृष्टिवाद मीर इश्वर ! प्रस्थ में भ्ावरणीय ल्लेखफ
ने सृष्टि कच्त त्यवाद फी सम्पूर्ण फत्पनाएँ भौर उसके कारणों
फा पिस्तार स अन्येपण फिया | শহিদ सतायग्रोम्वियों ने
एकन्द्र सष्टि के बिभिन्न २६ प्रकार यवत्ाये ४, परन्तु प्रस्यफ
प्रफार फे सम्पन्ध में भिन्न भिम्र॒ मत फ विषाणं न रश
शात्तता ही ब्यकस्ध फो है।
प प्मनन्प श्विमय प्रप्र मे स यद् सम्पूण विश्य उत्सन्न
हुआ इस पार फी मास्या ऽपर यज्ञाय गय ष्रोमे%
यदुत सी यवकाद दुई दीखन मे भ्राता 1 जा फ पुनः भन्न फे
स्परूप फ विपय में मतान्सर हैं, झोर इस फारण से उनमें भी
उप भेद पढ़ गये हैँ । परन्तु 'छग्पेर कु नासरीय सूज्त के अस्दर
ष्ठी पार स्पष्टरूप से फ रदो ए च অথ बुद्धि হুল আগ
वियाद इोते द्वुए जगत तथा जगत्फठा सम्बन्धी छर् च्िमीफो
जानता नहीं হ।
इयं पिख्ष्टिपतत भाष भूष ,
যাহ সা বৃ यदिवाल।
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