सोच-विचार | Soch-vichar

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Soch-vichar by जैनेन्द्र कुमार - Jainendra Kumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आप चया करते द ? ७ में भी चला । आगे उन्हें एक अन्य व्यक्ति मिल्रे। पूछा, आप क्या करते हे? उत्तर मिला, 'में डाक्टर हूँ ।? सज्जन मित्र ने कहा, ओह आप डाक्टर हैं। बड़ी खुशी हुईं। नमस्ते हावटर जी, नमस्ते | खूब दर्शन हुए । कभी मकान पर हशंन दीलिए व |-जी हाँ, यद्द लीजिए হা ভাত হী परर' कोरी है জী हाँ, झापकी ही है। पधारिएगा। क्ृपा-कृपा। अच्छा नमस्ते ।! भके इन उद्गा पर वहत प्रसन्नता हुईं। किन्तु झुक प्रतीत हुआ किमेरे दसाम हीने से उन व्यक्ति का डाक्टर होना किसी कदर अधिक ठीक बात है। लेकिन, दयाराम होना भी कोई गछ्लत बात वो नहीं है । किन्तु, मिश्रवर कुछ आगे बढ़ गये थे। में भी ८ल्ला । एक तीसरे ब्यक्ति सिक्के । कोंटी वाले मिन्न ने नाम परिचय के बाद पूछा, आप क्या करते है ¢ वकील ४।! योद वन्ी्न है । बढ़ी प्रसक्षता के समाचार हैं। नमस्ते, वकील साहब, नमस्ते । मिलकर भाग्य धन्य हुएणु। सेरे बहनोई का भतीजा इस साख सो फाइनल में है। मेरे क्षायक खिदसतऊ हो तो बसलाइए ! जी हाँ आप ही की कोटी है। कभी पधारिएुगा। अच्छा जी तमस्ते, मस्ते, नमस्ते ।; हल हपोद्गार पर में प्रसक्ष ही हो सकता था। चिन्त, शुके सगा कि बीच में बकीजसा के आ उपस्थित होने के काशण दोनों की मित्रता की राह सुगम हो गई है । सह तो टीक है। शावहर या बकीक्ष था और कोई पेशेवर होकर पतक्ति की मित्रता की पात्रता बढ़ जाय इसमें मुझे क्या आपसि १ इस सम्बन्ध में मेरी अपनी अपान्नता मेरे निकट हतनी सुरुप्ट कद है, और




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