श्री गुण सुन्दर वृत्तान्त | Shri Gun Sundar Vrattant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{ ६ ) मेरे लिये यहां क्‍या देखी बात शोचने की। पके अनाथ घता फर तो इर भूल आपने की॥ मेरी है वह शक्तिन मैं कुछ भी तो सकुचाऊं। -किन्तु बात की बात में उसे पूरी कर पाऊं॥३१६॥ जो कुछ भी आवश्यकता जिस समय आप की হী। तथा शत्रु से अगर आपने कहीं मात ली हो॥ तो उस को भी मार भगाऊँ ताकत है मेरी । यथा हवा से तूल उड़े वह लगे नहीं देरी ॥४०॥ थों घमरड में आकर बोला जहां नरेश्वर था। मुनि बोले किन आगे बद्विये हे भूपाल बथा ॥ मेरे रिपु से घे बचा लेना तो द्र रहा) स्वयं शत्रं से आप षच रहो यह भी सुकर न हा ॥४१॥ इसी लिये मैं तुमको भी फिर अनाथ कहता हूँ । इस बारे में भूप कहां में चुप हो रहता हूँ ॥ तब राजा ने उसी वात को थों पुनरुक्त कियां। मेरे कहने पर न आपने कूछ भी ध्यान दिया ॥४ण०॥ मेरी जेसी शक्ति और वैभव सेना दल है । पता नहीं आप को अतः यों कहने का बल है || वरना तो स्यावास आपके सुहसे ही ছার । अत; उसी का थोड़ा वर्णन कर मैं बतलाऊं॥४६॥




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