हरिजन सेवक | Harijan Sevak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
77 MB
कुल पष्ठ :
896
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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ছি शांधीजी ক্যা
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५१ १ । च - | (^ न्वी
निद्त-कक्स, वष्ठी, , [ हरिजन-तेवक-संष के संरक्षण में ] | |
ध , दिल्ली, शुक्रवार, ६ मार्च, १६१४७ [কষা ३
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| वियव-सूच्री च लभा, कन-संभद् -८३०]४ 1 नादकोरभ्, ४६ प्रीय ; सामनि
भौतं कर मायादां कर शुक्षक-- चाइ् का पुष्ण-अधाल--परष्ट २५ सभा, धब-संधद ४३४॥-) । मूर के किए रजानभी रेक से ।
भ बहादर ९९ | र३ क़रबरी
_ शॉभीऔ--२५० भोसके और इरिजित--बह १९;
कलाक ३०; शीरंगस का भाषत---प४ह ६३
उतुसक्षपेट के दटिलतों के कह---इह ६२;
भी खलीन बोसशुति--वमं क सूक ११, =,
भी दासोदरदास সুধা के क पंस्मरण प्रह २४;
১১ ऋष्ध-विबर०---३५॥
এপ পবা পাপন
बापू का पुरण-प्रवास
[५५ ] |
[ १५ करषदी से १६ क्ृश्यरों, १९३४ तक ]
१७ फरवरी
ক্যাব से पॉकियेरी, १६ सोक ; सार्वजनिक सभा; हरिजन-
सेब्रक-संघ का भ्ालपन्र, पन -सप्रह ८९३॥।)॥ शांधीकृषप्पस्, १५
कीश : कपा भान्न्त का विरीक्षण | तिदबश्काहे, ३६ सीक :
सार्वजनिक सना, अनन्द ७५९॥०]११ वेक्ोर, रेक्त से
७४ सो ।
१८ फरवरी
जेलोर ! शॉरिजन-बंस्तियों का निरीक्षण, हे सभा,
भभता, ग्नि भिपैकिटी, ज़िकानबीर्ड तथा इरिजनों के लानपत्न
चत्र-संग्रद ६०५६४) ४ 7 कंटपाडी । घन-संभद ९६७) गुडी मसम्
'अंगन्संक्षाई ५६१॥।), भंबृर : घन-संग्रह २५४), तिशफ्तर, ५८
जी : सार्वशतिक सभा; घत-संगह ८४७॥] क्राइरट कुलाणस :
सभा । ছার) ५ भीक, से तास, रेक चे, १६३ भीक ।
९५ रते
अद : फोटेसबक्स, : भौस-विपस ।
. २० क़रबरो মা
` (कभभ : “दरिजन' का संपादन
জা শীত ৪৭ ৪1০2৩) জাকিক-ন
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% रवते , ` '
कॉजीपरस, रेक से, ९१ भीक । दिपकदद ; प-सं
९४) । कोकीभ् \ हवे भनिक पषण सवसं २१३
श्त + अत-संत्ा॥ 4৯.) যালীধত ; ঘন-হমহ ২৯২৭)
জার ॥ : বাধার 3801 सरणी, ७५ भीस : सार्वजनिक
সপ
{न |
र न | अही : जन-संप्रह इज) कैकेरी ; এন संग्रह ১০৭1৮)
असुर, २२२ भील । कु के किण रवागती लौरर से । रिंह्ी
पश्चमपेट, ९० श्रील । हडोकेरी, १ शोक ; सावेजमिक सभा,
জলা জা গম, ঘন ধাম २५०।१]४ ।
६ रथौ
খিযালধীত। 18 भीक : सार्वसनिक भा, जनता एषं
धुसकलात्री' के सानपत्र, ध्रन-संप्रद ५९३॥) । बेंहूर, ४१ शोक ।
सोश्षवारपैद, ४ सी । सार्विजमिक सभा, घन-संध्रह २८८॥ ~)
शु दुक, १५ भीक : घन-संग्रह ९)॥। सरकमा, १२ नीक;
सथंजनिक सभा, धन -तेपरह ८६०५४) । शरिशषन-कार्ग्रंकत्ताओों
से भेंट ।
इस सप्ताह में कुछ यारा ; ७७० भीक
' हस सपताई में कुक धम-संग्रहः 1९८इ९॥४) ११
अबतक कुछ घन-पंग्रह : ३ ०५५६ ८॥5) ८
विश्व-बन्धुता के लिए
भारत पूक अविस्ाज्य २ष्ट्र हैं। शाजनीसिक इंष्टि से से
ही ब्रिटिक्ष भारत, देशी शज्य भारत, फ़रास्तीसी भारत, पौ७चु -
तीज भारत सास के कई भारत हों, पर वे सभी पुंक भारतीय
राष्ट्र के ही भंग हैं । सथ में वही रक्त अवादित हो रहा है, बढ़ी
सामाजिकं भौर वहो धार्मिफ काते सर्वश्र पाई जांती हैं भौर पक
ही जीवन-सूंत्र में हम सव सणिययों की तरह गंधे हुए हैं । इसॉलए
फरासीसी झापसक्ष के अ्तरत कराइकाक और पॉडिश्रेरी मास के
स्थानों में गांधीजी का आगा कोई भाधय जमक था अराधारण
আমা লহ हैं। पॉडिचेशी के निमन््त्रण को तो पद टाकू ही नहीं
सकते थे | कोंगोंमे सरार-वार लिखा था । भतं; उनके वरवुर्त
लाग्रइ को सानना ही पहा। वहाँ जो सागपतश्र दिया गब्ा,डसके
जवाध में गांधीमीने विश्साशपूर्वक बतक्ाथा, कि किस तरह यह
आन्दोकन नागयभान्न कौ सलानता न्नीर वर्हता के साधन दक्र
कर र्दा है । यम्दोमे कहा :-
भ्दृयता-जिवारण के भान्दीलन मे चदि आहं तो सभीकशोन
भाग के सकते हैं। स्थपि भारस्भ हकां इस खदर्ण हिंदुओं के
अस्त से होता है,लिल्होंने कि धर्म के मास पर इसने भजुब्यों
को दबाकर सा गुला बताकर भ्य/थ किमा है, पर इसारा
अस्तिल शेहुस सो इसके হাহা विंध-परचुता को प्राप्त कहना
है। आप कौतों पर ऋंघ का হাঙর লাজ परा है, चति
मैरे कथष का निलय समझने से. भापकों कोई कहिताई
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