ताराबाई एक ऐतिहासिक नाटक | Tara Bai Ek Etihasik Natak
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
38 MB
कुल पष्ठ :
174
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पहला अंक । दूसरा दृश्य । ११
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লীন এ ৯ জা ০ ५५ গা ৮৮৭১
( घडे लिये हए दासैर्यो* प्रवेश । )
१ दासी--सुना, रानासाहब कल बहुत खफा हुए थे ।
२ दासी--सो तो होंगे ही, सो तो होंगे ही ;-किस पर हुए थे !
१ दांसी--अपने मैमले लड़के पिर्थीके ऊपर | ओर किस पर ।
२ दासी--सो तो होंगे ही । क्यों खफा हुए थे ?
१ दासी--सुनती हूँ, पिर्थी छोटी रोनीके कुआँर जयमलकों
तरवारसे मारने चला था |
२ दासी--क्यां जी सचमुच ! मारने तो चलेदीगा--मारने ते
चलेदीगा ।--मगर क्यों मारने चला था ?
१ दासी--यही भाई-भाईका ऊरूगड़ा है। इसके জিনা হালা
छोटे लड़केको अधिक चांहते हैं कि नहीं !
दासी--हाँ सो तो है ही--सो तो है ही । प्यारी रानोका
लड़का है कि नहीं | इस तरहका क्यों न हो ? सतजुगसे ऐसा
ही तो होता चला आता है। यह देखो, राजा युधिष्ठिरने अपनी
प्यारी रानीके लड़के भरतके लिए दूसरी रानीके लड़के बल-
रामको वन भेजकर अपनी जानसे भो हाथ घोये थे। इस-
तरहका॑ तसरोशा अब क्यों न होगा ?-लेकिन उसके लिए यों
मारकार न करनी चाहिए |
१ दासी-मेभला कुरर क्यों सहने लगा !
२ दासी-सो तो सच है बहन | क्यों सहेगा ?--वह भी तो
राजाका लङ्का है, वह क्यों सहने लगा ?--लेकिन अव क्या
होगा ? द
१ दासी--रानाकी जैसी मर्जी है वैसा ही काम होगा.।
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