ताराबाई एक ऐतिहासिक नाटक | Tara Bai Ek Etihasik Natak

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Tara Bai Ek Etihasik Natak  by द्विजेन्द्रलाल राय - Dwijendralal Ray

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला अंक । दूसरा दृश्य । ११ + व একা রী জলি, এ সি গালি এসি टच पता म द कि লীন এ ৯ জা ০ ५५ গা ৮৮৭১ ( घडे लिये हए दासैर्यो* प्रवेश । ) १ दासी--सुना, रानासाहब कल बहुत खफा हुए थे । २ दासी--सो तो होंगे ही, सो तो होंगे ही ;-किस पर हुए थे ! १ दांसी--अपने मैमले लड़के पिर्थीके ऊपर | ओर किस पर । २ दासी--सो तो होंगे ही । क्‍यों खफा हुए थे ? १ दासी--सुनती हूँ, पिर्थी छोटी रोनीके कुआँर जयमलकों तरवारसे मारने चला था | २ दासी--क्यां जी सचमुच ! मारने तो चलेदीगा--मारने ते चलेदीगा ।--मगर क्यों मारने चला था ? १ दासी--यही भाई-भाईका ऊरूगड़ा है। इसके জিনা হালা छोटे लड़केको अधिक चांहते हैं कि नहीं ! दासी--हाँ सो तो है ही--सो तो है ही । प्यारी रानोका लड़का है कि नहीं | इस तरहका क्‍यों न हो ? सतजुगसे ऐसा ही तो होता चला आता है। यह देखो, राजा युधिष्ठिरने अपनी प्यारी रानीके लड़के भरतके लिए दूसरी रानीके लड़के बल- रामको वन भेजकर अपनी जानसे भो हाथ घोये थे। इस- तरहका॑ तसरोशा अब क्‍यों न होगा ?-लेकिन उसके लिए यों मारकार न करनी चाहिए | १ दासी-मेभला कुरर क्यों सहने लगा ! २ दासी-सो तो सच है बहन | क्‍यों सहेगा ?--वह भी तो राजाका लङ्का है, वह क्यों सहने लगा ?--लेकिन अव क्या होगा ? द १ दासी--रानाकी जैसी मर्जी है वैसा ही काम होगा.।




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