श्रीयोगवाशिष्ठ [भाग 2] | Sriyogavashistha Bhasha [Bhag 2]
श्रेणी : पौराणिक / Mythological, हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
62 MB
कुल पष्ठ :
894
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)निवाण अकरण । ११
: ` वरिष्ठ बोलते, हे महाबाहो] पिर मी मेरे:परम:वचन सुनो; तुम्हारे
हित की कामना से में कहता हूँ।झब- तुम आंत्मपंद को प्राप हुए-हो
परन्तु बोध की वृद्धि के निमित फिर.सुनो;-जिसके सुनने से अत्पबुद्धि
भी आनन्दपद को. प्राप्त-.हो । हे: रामजी! जिसको अनात्म में. आत्मा-
मिमान है ओर आताज्ञान नहीं हुआ उसको इब्दियरुपी शत्रु दुःख देते
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है जैसे निल पुरुष को. बोर दुःख देते:हैं ओर जिसकी आत्मपद में
स्थिति. हुई है उसको इन्द्रियाँ दुःख-नहीं:देती-जैसे हृढ़ राजा के शत्रु भीं
मित्र हो जाते हैं तेसे ही ज्ञानवान् के इन्द्रियगण मित्र होते हैं। जिन
पुरुषों की देह में स्थित बुद्धि है ओर इन्द्रियों: के विषय कीः सेवन करते
हैं उनको बड़े. दुःख प्राप्त होते हें। हे रामजी! आत्मा और शरीर का
सम्बन्ध कुछ नहीं है। जेसे तम ओर प्रकाश विलक्षण स्वभाव हैं तेसे
ही आत्मा और देह का परस्पर विलज्ञण स्वभाव है। आत्मा सर्वविकारों
से रहित, नित्यमुक्क, उदय अस्त से रहित ओर सबसे निर्लेप है और सदा
ज्यों का त्यों प्रकाशरूप भगवान् आत्मा सत्रूप है उसका सम्बन्ध किससे
हो ? देह जड़-ओर असत्य, अज्ञानरूप,तुच्छ, विनाशी और अक्ृतज्ञ है
उसका संयोग किस भाँति हो? आत्मा चेतन्य, ज्ञान, सत् ओर प्रकाशरूप
है उसका देह के साथ केसे संयोग हो ? अज्ञान से देह ओर आत्मा का
संयोग भासता है; सस्यक्ज्ञान से संयोग का अभाव भासता है। हे रामजी !
ये मेंने निषण वचन कहे. हैं; इनका आरम्वार अभ्यास करने -से संसार
मोह का अभाव हो जावेगा | जबसंसार का कारण मोह निवृत्त हुआ तब
फिर उसका सद्भाव न: होगा जबतक अज्ञानरूपी निद्रा से हृढ़ होकर नहीं
जागता तंबतक आवरण रहता दै । जैसे निद्रा के-जागे से फिर निद्रा घेर
लेती है परुजब हृढ़-होके जागे तब फिर नहीं घेरती; तैसे ही हृढ़ अभ्यास
से अज्ञान: निवृत्त-हुआ फिर आवरण“न:करेगा। इंससे मोह: ओर दुश्खं
_निवृत्त के अर्थ दृद अभ्यास करो. हे रामजी! आला देह के गुण को `
अङ्गीकारः नरी करता; यदि देह के गुण अङ्गीकार करे तो आत्मा भी जड़
हो जावेःपुर बह तो-सदा ज्ञानरूप है; और जो देह आत्मा का गुश पर्-
मार्थ से अड्जीकार करे तो देह भी चेतन हो जावे पर वह तो जड़रुप ই.
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