मियार-उल-मुकाशफा | Miyar ul Mukashfah

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Miyar ul Mukashfah by बाबा नगीनासिंह आत्मदर्शी - Baba Naginasingh Aatmdarshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका : १३ आक्तज्योति से प्रज्वलित हुईं इस अंधकार की विरोधी है, जिसले धद्द उसी तगह उड़ जाता है जिस तरह कि दोपक की ज्योति से अंधक्तार ।” निवेदनं क्रिया- “फिर मेरा अशान फ्यों नहीं उड़ता ?” कहा--उसका कारण यह है कि तुमारे में उल्टेपन की सावनाएँ स्वाभाविक भावनाओं की अपेक्षा चहुत अधिक और दृढ़ हैँ । यह मदावाक्य स्वांसाविक्र उस्टेपन की तो ऐसे अवसर पर तत्काल उड़ा देता है, षित्त लिश विरुद पश्च के छोगों की शिक्षा से उल्टरेपन की अधिक रदा होती दे, वद महावाक्य शे प्रभाव म उसी तरद बाधक होती है জলা कि भीगे हुषप स कं पदर (वे) मे पानी की तरी अग्ति के प्रसाव की वाध्रक दौती है” | निवेदन किया-- फिर मेरे जैस दुर्भाग्य को चिकित्सा शास्त्र में या आपके निकट क्या है ?” कद्दा-“यह रुपए है कि भीगी हुई रुई के फंचे को पहले धूप में खुखा लिया जाय, जब सकी भाँति सूख जाय, तब अग्नि में दिया जाय, उस समय वद्द तत्काल उड़ जायगा। इसी तरह यह ओ उस्टापन अर्थात्‌ विरोधी, मूढ़ ओर विदेशी रोगौ की शिक्षा और सिद्धांत है, बही इस जगह महावाक्य के परमाव - मेंबाधक हु । पदले उसको उचराड्‌ दो ओर पिर जिस विधान से हमने मद्दावोक्य खुलाया है, उस पर विचार या मनन करो। उस , समय अक्षान जो स्वरूप का आवरण है स्वतः उड़ जायगा। उसके वाद्‌ आत्मा ज्योतिर्यो कौ ज्योति स्वरूप अद्स्‍धसव होगा, ओर यद्धे आत्मसाक्षात्कार दै 1 निवेदन किया--“आपझही रूपा करके बताये कि उन झठे निश्चयों की जड़ को मैं कैसे काट !” कदहा-- थे समस्त झूठे निश्चय तुम्दारी दी पक्की भावनाएँ: था कल्पना है, तुम स्वयं दो उनको बदल सकते हो, इसमें हम . कया कर सकते है निवेदन क्रिया गया ~ “आप जत शु




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