गांधी-मानस | Gandhi Manas

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Gandhi Manas by नटवरलाल स्नेही - Natavarlal Snehi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मूकंकरोति वाचालस पन्न॒ में, ग्रिरि--प्रथ, गहन वन, वेदना अवसाद के घन, ` शून्य वेला, में अकेला, लक्ष्य के पवतिकूल लक्षण | विपुल पातक की शिला शिर) देव / तब केसे तिरेँ में ! प्रिन्चु की स्नेहोर्मियों पर छमुद अवगाहन करूँ में ? तल्यं की तपर अग्नि में तृण--- कुछ तपना चाहता है, अद्विपति के, छुद्र रज- कर्ण -- को न गौरव का पता हे। কিন্তু हैं, विश्वात--फ़्ल की, जानता केसी लता है! दनुज तक्षक मी शरण के मर्म को पह्िचानता है । मूक है, मेरी गिरा तुम, अन्य हूँ, तुम दिव्य लोचून, बीन हूँ में, सरस रवर तुम, नौर हो तुम और में घन । ( आण हो तुम भौरं में तन ) ০




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