ब्रह्मचर्य | Brahmacharya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.85 MB
कुल पष्ठ :
206
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)न्रह्मचये
न्द्रेयो को एक साथ वश मे करने का अभ्यास करे तो जस-
सेन्द्रिय को बश से करने का प्रयत्न शीघ्र ही सफल हो सकता हैं ।
इनमे मुख्य वस्तु स्वादेन्द्रिय है । इसीलिए उसके संयम को हमने
प्रथक स्थान दिया है । उस पर अगली वार विचार करेगे ।
घ्रह्मचय के मूल कर्म को सब याद रक्रखे। ब्रह्मचये अर्थात् ब्रह्म
की-उसत्य की-शोध में चर्या, अर्थात तत्सम्चन्धी छाचार | इस
मूल अर्थ से सर्वेन्द्रिय-सयम का विशेष अर्थ निकलता है । केवल
जननेन्द्रिय-सयम के अधूरे अथ को तो हमसे भूल ही जाना
चाहिए ।
संगल-प्रभाव, ४#-प-३०
शा
दर
दम
सन्तति-निग्रह-१
मेरे एक साथी ने, जो मेरे लेखो को वडे ध्यान के साथ पढते
रहते है, जच यह पढ़ा कि सन्तति-निग्रह के लिए सम्भवत में
उन दिनो सहवास करने की वात स्वीकार कर लूंगा जिनमे कि
गर्भ रहने की सस्भावना नहीं होती, तो उन्हे वड़ी वेचैनी हुई ।
सेने उन्दे यह समकाने की कोशिश की कि कृत्रिम साधनों से
सम्तति-निय्रह करने की वात मुझे जितनी खलती है उतनी यह
नद्दी खलती, फिर यह है भी अधिकतर विवाहित दस्पतियों के ही
लिए । आखिर चदस बढते-वढते इतनी गहराई पर चलती गई
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