ब्रह्मचर्य | Brahmacharya

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Brahmacharya by Mahatma Gandhi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न्रह्मचये न्द्रेयो को एक साथ वश मे करने का अभ्यास करे तो जस- सेन्द्रिय को बश से करने का प्रयत्न शीघ्र ही सफल हो सकता हैं । इनमे मुख्य वस्तु स्वादेन्द्रिय है । इसीलिए उसके संयम को हमने प्रथक स्थान दिया है । उस पर अगली वार विचार करेगे । घ्रह्मचय के मूल कर्म को सब याद रक्रखे। ब्रह्मचये अर्थात्‌ ब्रह्म की-उसत्य की-शोध में चर्या, अर्थात तत्सम्चन्धी छाचार | इस मूल अर्थ से सर्वेन्द्रिय-सयम का विशेष अर्थ निकलता है । केवल जननेन्द्रिय-सयम के अधूरे अथ को तो हमसे भूल ही जाना चाहिए । संगल-प्रभाव, ४#-प-३० शा दर दम सन्तति-निग्रह-१ मेरे एक साथी ने, जो मेरे लेखो को वडे ध्यान के साथ पढते रहते है, जच यह पढ़ा कि सन्तति-निग्रह के लिए सम्भवत में उन दिनो सहवास करने की वात स्वीकार कर लूंगा जिनमे कि गर्भ रहने की सस्भावना नहीं होती, तो उन्हे वड़ी वेचैनी हुई । सेने उन्दे यह समकाने की कोशिश की कि कृत्रिम साधनों से सम्तति-निय्रह करने की वात मुझे जितनी खलती है उतनी यह नद्दी खलती, फिर यह है भी अधिकतर विवाहित दस्पतियों के ही लिए । आखिर चदस बढते-वढते इतनी गहराई पर चलती गई




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