विद्यार्थियों से | Vidyarthiyo Se

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Vidyarthiyo Se by मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विद्यार्थियों के लिए [ १३ मुझे मौज व टीमटाम से रहने का मोह नहीं है। में भौर मेरे आश्रित जन अच्छा मिरोगी जीवन রিবা অক और वक्त ज़रूरत का कास अच्छी तरद चलता जाय तो इतने से सुमे सन्तोप है। दोनों समय स्वास्थ्यकर आद्वार श्रोर दीक ठीक कपड़े मिक्ञते जाय बस इतना दी मेरे सामने सवाल दै | पैठे के बारे में मैं ईमानदारी के साथ रहना चादइता हूँ! भारी सद लेकर यां शरीर बेच कर मुझे रोजी नहीं कमानी । देश सेवा कटने ८ को भी मुझे इच्छा है. भ्रपने उस लेख में भापने जो शर्तें रखी हैं, उन्हें पूरा करने के लिए मैं सैयार हूँ। पर, सुमे यद नदी समः रदा है कि मैं क्‍या करूँ ? शुरूघत छदँ श्रीर कैसे की जाय ? शिक्षा सुमे केपल विद्यार्थी और अब्यावद्वारिक मिद्दी है। कभी-कभी मैं सत कातने की सोच रह्दा हूँ. पर काठना सीखें कैसे भर दस सूत का वय। दोगा, पसन भौ मुम पता नष | जिन परिस्थितियों में में पड़ा हुआ हूँ, उनमें आप मुझे क्‍या सम्तान-नियमन के इत्रिम साधन काम में लाने की सलाद देंगे! सयम | और बद्गचय॑ में मेरा विश्वास है. पर बड़ाचारी बनने में मुझे ध्रमी उ सपय लगेगा । मुक भय दै हि पूर्ण सयन की सिद्धि সত হীন ক দু में हृप्रिम साधनों का उपयोग नद्दी करूँगा, तो मेरी सी के कई दच्चे पैदा हो जायेंगे भर इस तरद यैठे ठाल्े आर्थिक बरबादी मोल ने रुग, श्रीर्‌ फिर पुमे पषा लगता है कि अपनी ख्रो से, उप्तके स्वाभाविक भावना विद्यापत में, कड़े संयम का पालन कराना डिल्कुज्ञ ही उचित नहीं | भाखिरफ़ा( खावारण জী पुरे के जीयन में बियय भोग के क्षिए हो स्पान दे दी । में उसमे अपवाइ रूप नहीं हैँ। और मेरी सो को, आपने म्नचर्य', विपय सेदव के खतरे! आदि दिपयों के मइत्वपूर्णो




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