श्री भागवत दर्शन खण्ड-98 | Shri Bhagwat Darshan [ Khand - 98 ]

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Shri Bhagwat Darshan [ Khand - 98 ] by श्री प्रभुद्त्तजी ब्रह्मचारी - Shri Prabhudattji Brahmachari

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी - Shri Prabhudutt Brahmachari

Add Infomation AboutShri Prabhudutt Brahmachari

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
[< दूर जाते नहीं थे। गंगा के तीर-तीर चलते हए एक रशिवमन्दिर में पहुँचे। रात्रि में वहीं विश्राम किया। गरमी के दिन थे, कोई कष्ट नहीं । मन मेँ बडी प्रसन्नता । नया हयी नया जीवन । पुरानी बात हो गयी । लगभग पचास वर्षों की बात है, सभी स्थानों के नाम भूल गये । प्रसिद्ध-प्रसिद्ध स्थान याद हैं । कई दिन चलकर चुनार पहुँचे । चुनार--गंगा के दाहिने तट पर एक पहाड़ों पर यह अवस्थित है । प्राचीन स्थान है इसका पुराना नाम चरणाद्रि है। चरण के आकार की पद्दाडी है, तीर्थ स्थान है। बामनावतार में भगवान्‌ ने भूमि नापते समय यहाँ चरण रखा था। उसी पहाडी पर यहाँ के पुराने राजा का किला है। सुना है चुनार का राजा बहुत धनी था। मुसलमानों ने उसकी रानी से स्यात्‌ दश मन हीरा जयादिरात लिये थे । यहाँ श्रीबल्लभाचार्यजी आकर रहे थे | उनकी बैठक है। प्राचीन किला है। उसमे उस समय अपराधी बालकों का काराबास था । स्थान सुन्दर दर्शानीय ই। मीरजापुर--चुनार से चलकर मीरजापुर आये गगा के किनारे-किनारे जा रहे थे । गगाजी के सर्वथा तट ही पर वों के जिलाधोश की कोठी थी, हम 5सके नीचे से तट तट जाना चाहते थे | जिज्ञाधीश ऑगरेज था। उन दिनों जिलाधीश अपने जिले का सम्राद्‌ ही माना जाता था। जिले भर मे जो चाहे सो करे | जिलाधीश के आंदमियों ने हमें आगे जाने से रोक दिया। हम लडाई भंगडा करने को उद्यत हुए, किन्तु उसमे आगे जाने ही नदीं दिया । फिर दूसरे मार्ग से बंगले को बचाकर गगा का तट पकडा। समय की बात देसिये एक समय वह था, कि जिला- धीश के नोकर ने हमें बेंगले की सीमा के नीचे से जाने तकः नहीं दिया। कालान्तर में जब स्वराज्य हो गया और हमारे:




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now