जैन बौद्ध तत्वज्ञान | Jain Boudha Tatwagyan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
255
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)४
उपाणीसे भगवान बुद्ध कहते हैं-“दीघकाल्से तुम्हारा कुछ
निगंठोंके लिये प्पाउकी तरह रहा है । उनके जानेपर पिंड नहीं देना
साहिये यह मत समझना | ?? “भगवान ता मुझे निगठोंकों मी दान
करनेको कहते हैं | ?? ““दीवतपस्ी निर्गंठ जहां निगठ नाथपुत्त थे
यहां गया ।
(९) 7१० ४९६ अमयराभकुमार छुस्त (म० नि० ५ | ८)
अमयरानक्ष्मार जहां निगठ नातपुत्त थे यहा गया |
(१०) १० ४५९ सामजछफलसुत्त (दी० नि० १ { २)
किसीने कहा-' निभय नात पुत्त ??
(११) ए० ४८[-सामगापप्तुत्च (4० नि० < ! ४)
( विक्रम प्र4० ४२८ )-एक समय भसगधान शाक्यदेशमें साम-
गाममें बिहार कप्ते थे। उस सयय लिभठनाथ पृत्त ( जैन सीर्थकर
महावीर ) भमी भभी पावासे निर्माण हुये ।
नोट-हूत्त समय गोतमखुदध की भायु (५०५जन्मबुद्ध-४ २८)-७७
वर्चकी थी, उनकी प्ूण आयु ८० वर्षकी थी।
(१२) ४० ९२०-महापारोनष्याण छु्त (दी० नि० २ ३ 1६)
८ प्रसिद्ध यशस्वी तीर्थकर निगठ नातपुच् ”!
(१३) मज्मिमनिकाय चूल सारोपम सुत्त (१०)
“से इसे भा गोसम समण ब्राक्षणासंधिनो गणाचरिया झ्ाता पस-
स्सिनो तित्थकरा साघुसम्मता वहुजनस्स सेय्यन्षिद निगठों नाथपुत्तों।
(१४) दीधैनिकाय १० २९ पत्तादिक छुचत--
(एक समये भगवा सक्रेसु विदहरति-तेन छोपन समयेन निगठों
मापपुत्तों पावायं अघुना काछकता होति (श्रीमहावीरका निर्याण पुष्मा)
(१५) मश्य्रिमानिकाम महासक्षिक्सुत्त (३६)
सश्िकरिगथ पुतो महान उपसक्षापि ।
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