रतनहजारा | Ratanhazara
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
30 MB
कुल पष्ठ :
110
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about जगन्नाथप्रसाद कायस्थ - Jagannnath Prasad Kaysth
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१५४ रतनहजार ।
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आवत आमिर काम, तन बाढत जोबन जोर |.
निभीदार कुच उकसि के सोभा देत अकोर(?)॥* १५॥
विधये (२) मेन खिखर ने रूपजारु दग मीन ॒ 1.
रहत सदाईं जे भये चपर गतन रसरीन ॥श्श्गा
ख्ख सेन ते मेन मे यह अदमुत गत आद् ॥.
वह् पिघरुत खमि आपिकै यह् ठगि मन पिघलाइ॥ १ ६॥
बदन सरोबर ते भरे सरस रूपरस मेन ॥
डीठ डोर सो बांधिके डोछठत सुन्दर नेन ॥ ११७॥
चित चाहन सरसाइ रस रहे समारत रोज |.
मनमथ राज सु आइ के किय उर मढ़ी उरोज॥ ११८॥ |
करत न जब तक मदन नप रूप सनद् पर छाप । `
तब तकं रग दीवान दिम होत न वाकी थाप ॥११९॥
छवि तावन यह् तिर सिखा सूप सजट ख्ख नेन ।
कटे दे हित करप पे मन पट धोवी मेन ॥१२०॥ `
जब ते दीन्टो हे इन्हे मेन महीपति मान । |
चित चुगटठी खगे करन तेना रखगि रमि कान ॥१२१॥
सिद्ध करा जब ते इन्हे ठला पढ़ाई मेनं ।
सुरजन मन बस करत हैं तब ते तेरे नेन ॥ १२२
1
(र) नशर घुस पुराने कबियों ने घुस के अर्थंमे भर्थात् रिसवत के अर्थङ्नं |
आअकोर को लिखां है । (३) फँसाया ।
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