रतनहजारा | Ratanhazara

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Ratanhazara by जगन्नाथप्रसाद कायस्थ - Jagannnath Prasad Kaysth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५४ रतनहजार । লক লব পলিপ পপি ममयम >> कक न ल्‍े>«»+आलंफ >> ++>+े» कप फप आवत आमिर काम, तन बाढत जोबन जोर |. निभीदार कुच उकसि के सोभा देत अकोर(?)॥* १५॥ विधये (२) मेन खिखर ने रूपजारु दग मीन ॒ 1. रहत सदाईं जे भये चपर गतन रसरीन ॥श्श्गा ख्ख सेन ते मेन मे यह अदमुत गत आद्‌ ॥. वह्‌ पिघरुत खमि आपिकै यह्‌ ठगि मन पिघलाइ॥ १ ६॥ बदन सरोबर ते भरे सरस रूपरस मेन ॥ डीठ डोर सो बांधिके डोछठत सुन्दर नेन ॥ ११७॥ चित चाहन सरसाइ रस रहे समारत रोज |. मनमथ राज सु आइ के किय उर मढ़ी उरोज॥ ११८॥ | करत न जब तक मदन नप रूप सनद्‌ पर छाप । ` तब तकं रग दीवान दिम होत न वाकी थाप ॥११९॥ छवि तावन यह्‌ तिर सिखा सूप सजट ख्ख नेन । कटे दे हित करप पे मन पट धोवी मेन ॥१२०॥ ` जब ते दीन्टो हे इन्हे मेन महीपति मान । | चित चुगटठी खगे करन तेना रखगि रमि कान ॥१२१॥ सिद्ध करा जब ते इन्हे ठला पढ़ाई मेनं । सुरजन मन बस करत हैं तब ते तेरे नेन ॥ १२२ 1 (र) नशर घुस पुराने कबियों ने घुस के अर्थंमे भर्थात्‌ रिसवत के अर्थङ्नं | आअकोर को लिखां है । (३) फँसाया ।




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